Anju Dixit

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विरोध

जीवन के इस मंच पर एक कुशल नृत्यांगना हो जाना चाहती हूँ मैं।


जीवन के सारे झंझाबतों को  बिना  जिए जीवन बहुत असम्भव है,  और बिना असहजता के सहजता को पा लेने में आनन्द कहाँ ।


मैं इस नारी की इस दयनीय छवि को मिटाना चाहती हूँ,
मैं उसके होंठो पर सुखद मुस्कान लाना चाहती हूँ,
जो भी गलत है उसका विरोध जताना चाहती हूँ।


सारी असहजता को अपने पगों में घुंघरुओं की भाँति बांधकर , जीवन के साथ सुर ,लय ,ताल के साथ,उचित आरोह, अवरोह का ध्यान करते हुए ।


इस जीवन रूपी मंच को, अपने जीवन के सुंदर क्रिया कलापों से सजाना चाहती हूँ मैं।


जब भी इस जीवन के मंच से अलविदा कहूँ, सबकी स्मृतियों में , सुखद , मीठी याद बनकर रहूँ, है मेरे विधाता बस यही चाहती हूँ मैं।


इस जीवन के हाव भाव को सकुशल जी लेने बाली


ऐसी नृत्यांगना हो जाना चाहती हूँ मैं।


हे ! विधाता बहुत नही बहुत थोड़ा पाना चाहती हूँ,


अपने खोए मन को पाना चाहती हूँ मैं।


मैं घुटकर  ,सहमकर, आँसूओं की धार को अपने गालों पर बहते हुए एक तड़प भरी सिसकती नींद नही चाहती हूँ।


मैं अपने पर हो रहे अत्याचार, गैरों पर हो रहे व्यभिचार को देख न मौन रहना चाहती हूँ।


मैं ऐसी भीरू मानसिकता से आजाद हो एक आवाज उठाना चाहती हूँ।


मैं वो भाव नही चाहती जिसके साथ बह जाऊं मैं अस्तित्व विहीन होकर।


मै चाहती वो भाव अपना अस्तित्व के साथ जियूँ मैं।


मैं अपने नाम से जानी जाना चाहती हूँ।

मैं नारी हूँ अत्याचार के विरोध में आवाज उठाना चाहती हूँ।


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

30-Sep-2021 06:27 PM

बहुत खूब

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Miss Lipsa

06-Sep-2021 12:31 AM

Waaah

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