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लेखनी प्रतियोगिता -14-Dec-2022- महफिल

एक अरसा हो गया है यारों की महफिल सजे हुए।

एक मुद्दत हो गई है चेहरे पर रौनक खिले हुए।

एक वो वक्त था, जब हर रोज़ कॉलेज की कैंटीन में महफिल सजती थी।
हर रोज़ चेहरे पर सुकून की लाली बिखरती थी।

आज चेहरे का वो नूर खत्म हो गया।
हर कोई पैसा कमाने की दौड़ में शामिल हो गया।

अब बेहिसाब पैसा है, पर रूह को मिलता ना वो सुकून है।
यारों की महफिल सजाने का मन में आज उठा जुनून है।


         *****Samridhi Gupta 'रसम'*****

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5 Comments

Mahendra Bhatt

16-Dec-2022 04:30 PM

शानदार

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Sachin dev

15-Dec-2022 05:52 PM

Amazing

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Abhinav ji

15-Dec-2022 09:17 AM

Very nice👍👍

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