महफिल

महफिल

जब गमे इश्क सताता है
भूले से जब वो याद आता है
रात भर आंख जब नम होती है
यादों की महफिल जवान होती है।

ये साकी, ये मयकदा, ये खनकते ज़ाम
ये महफिलें, ये शायरी से सजी हर शाम
एक शख्स की याद दिल पे काबिज है
बेफिजूल कोशिशें हैं, भूलने की तमाम।

ना मयकदा, ना साकी, ना ज़ाम चाहिए
यारों का साथ सिर्फ हर शाम चाहिए
कुछ कह सकें कुछ सुन सकें दिल की
शहर के बीच महफिल के लिए बियाबान चाहिए।

फिर सजी है उल्फतों की मजलिस
एक दूसरे से मिल रहे हैं, दिल से दिल
एक गर्म प्याली चाय की जो ठंडी हो चुकी
जवां हो रही है पुरानी यादों की एक महफिल।

आभार – नवीन पहल – १४.१२.२०२२💞💞

# प्रतियोगिता h


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3 Comments

Sachin dev

15-Dec-2022 05:52 PM

OSm

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Abhinav ji

15-Dec-2022 09:17 AM

Very nice👍

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Renu

14-Dec-2022 07:33 PM

Nice 👌

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