शिक्षा की झोली भरता है गुरु
ज्ञान का दीया जलाता है गुरु।
प्रलय सृजन दोनों हाथ में उसके
घोर तिमिर से बचाता है गुरु।
रोम रोम में उजियारा फैलाकर
मुक्ति का द्वार खोलता है गुरु।
नई नई पौध रोपकर उसमें,
संस्कारों का फूल खिलाता है गुरु।
कुदरत की कोख उजाड़े न कोई
निसर्ग की महिमा गाता है गुरु।
जड़ चेतन तुम्हारे हैं स्वामी
सबको आईना दिखाता है गुरु।
काम क्रोध मद लोभ की इच्छा
अंतर्मन से मिटाता है गुरु।
नेकी बदी का अंतर समझाकर
ज्ञान का मोती लुटाता है गुरु।
ज्ञान विज्ञान गीता कुरान
ईश्वरीय रहस्य खोलता है गुरु।
अनंत आकाश में हमको उड़ाकर
परलोक की सैर कराता है गुरु।
रामकेश एम यादव(कवि,साहित्यकार,मुंबई
Muskan khan
16-Dec-2022 04:39 PM
Well done
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