मर्डर- एक प्रेम कहानी (ep-10) अंतिम भाग
पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा- राज जेल से रिहा हो जाता है। और बाद में उसे पता चलता है कि शास्त्री जी और मौसी उसके साथ न होकर भी उसके साथ थे। शास्त्री जी का राज पर जो अटूट विश्वास था वो राज के जेल जाने पर भी नही टूटा। वो शास्त्री जी से मिलता है !
शास्त्री जी हैरान था क्योंकि राज खुद को खूनी बता रहा था)
अब आगे-
शास्त्री जी- (अब राज की बात पर यकीन करते हुए) तो तुमने किया है खून।
राज- हां मैं भी खूनी हूँ।
(डिटेल में बताता है)
दिव्या के बर्थडे वाली रात
(जब राज संजना को छोड़कर वापस अपने घर गया तो थोड़ी देर बाद दिव्या का फ़ोन आया था। लेकिन आवाज नही आ रही थी। दिव्या चुप थी। कोई आवाज ना सुनकर राज घबरा गया। और अपनी एक्टिवा में सवार होकर दिव्या के घर की तरफ भागा। जब वो दिव्या के घर पहुंचा तो खिड़की से कोई लड़का कूदकर बाइक स्टार्ट करके निकल पड़ा।
राज दौड़कर अंदर गया जाकर देखा तो सन्न रहा गया। दिव्या को मारकर पंखे में लटकाया था। दिव्या की ऐसी हालत देखकर राज आगबबूला हो गया। बिना कुछ सोचे समझे
राज गुस्से में आगबबूला होकर अपनी एक्टिवा की तरफ भागा से बाइक के पीछे दौड़ा ।)
(राज एक्टिवा जरूर चला रहा था लेकिन सड़क नही देख रहा था। बस उसके दिमाग मे दिव्या की झूलती लाश और उससे आगे स्पीड में भाग रही बाइक थी।)
करीब 1 घंटे की रेस के बाद सुनसान जंगल के पास बाइक वाला रुक गया। राज ने भी बाइक के साथ एक्टिवा रोक दी।
बाइक से लड़का उतरा और अपने सिर से हेलमेट उतारते हुए राज को धमकाते हुए बोला - क्या बात आशिक़ आ गया मरने। गुड जॉब।
राज - (लड़के का गले का कॉलर पकड़ता है वो लड़का और कोई नही राजीव था ) क्यो मारा दिव्या को।
राजीव -(उसके हाथों को एक झटके से छुड़ाते हुए) मेरी जिंदगी छीन ली थी उसने। मैं संजना से बहुत प्यार करता था। उसने और तूने मिलकर मुझसे मेरी संजना को छीन लिया। मेरी जिंदगी को छीन ली। अब मैं तुम दोनों से तुम्हारी जिंदगी छीन लूंगा, एक से तो छीन चुका हूँ। तुझसे भी छीन लूंगा।
(राज राजीव को एक घुसा मारता है। पर राजीव को कोई खास फर्क नही पड़ा वो हंसते हुए बोला। )
राजीव - तुझे क्या लगता तुझे फोन दिव्या ने किया था। नही……… ! वो तुझे बुलाने के लिए मैने किया था। और उसे तो मैं कब के मार चुका था। तेरे आने का इंतजार किया ताकि तेरे सामने भागूँ और तू मेरे पीछे आये। बहुत इंतजार कराया तूने, और मैं तुझे जानबूझकर इस जंगल मे लाया। अब तू भी मरेगा।
राज - ये तूने सछि नही किया, कौंन किसको मारेगा। कौन मरेगा। मैं नही जानता । पर तूने जो किया बहुत गलत किया।
राजीव- (अपनी भुजाओं की ताकत पर घमंड हो जैसी कुछ ऐसे बोलता है) - क्या बोला…… "कौन किसको मारेगा को मरेगा"
क्यो तुझे नही पता है क्या कौन मरेगा।
(राजीव को एक जोरदार थप्पड़ मारता है जिससे राज पीछे की तरफ झटकते हुए गिरते गिरते संभलता है। )
राज - तुझे मारने से पहले मुझे मौत भी नही आ सकती।(राजीव राज को जोर का घुसा मारता है राज दूर जा गिरता है। राजीव चलकर राज के पास जाता है और बोलता है)
राजीव- उठ जा "बाबू शोना" अभी रात बाकी है
(राज जैसे ही उठने की कोशिश करता है राजीव उसको लात से मारकर वापस जमीन से सटा देता है।)
(राज जमीन पर लेटा रहा और राजीव लगातार उसे मार रहा था, जितनी बार राज उठने की कोशिश करता राजीव उसके ऊपर पैर रखकर उसे फिर जमीन पर लेटा दे रहा था।
ऐसा थोड़ी देर चलता रहा राज को कोई मौका नही मिला अपना गुस्सा निकालने का राज जमीन पर हाथ पटक पटक कर खुद का गुस्सा निकालता रहा। राज आज तक किसी से झगड़ा नही था, जबकि राजीव एक गुंडा टाइप लड़का जिसका आएदिन झगड़े होते थे। अब राज भला राजीव को कैसे मारे। राज ने पेट के बल लेता था राजीव उसके पीठ पर लात जमाये जा रहा था। इस बार राज ने अचानक पलटी मेरी और राजीव का पैर पीठ के बजाए पेट मे जा लगा। राज को चालाकी से पलटी पलटी खाना भी महंगा पढ़ा, राजीव ने उसको पलटी खाते देख और तेजी से लात मारी और राज के मुह से खून की गुब्बारा निकल पड़ी।
राज पेट के दर्द को सहन नही कर पाया और हताश होकर बेहोशी में पड़ा रहा। अब राज की आंखे भी बंद हो चुकी थी। और उसे न दर्द महसूस हो रहा था न कुछ सुनाई दे रहा था। बस बंद आंखों में भी दिव्या का मुस्कराता चेहरा नजर आ रहा था। जो कि जन्नत में परियो की तरह दौड़ रही दोनो बांहे फैलाये राज को बुला रही थी। दिव्या की मुस्कराहट और उसकी सफेद और लंबी लहंगा, और साथ मे लहराती चुनरी,जिसमे दिव्या बहुत खूबसूरत लग रही थी।
(राजीव राज को घसीटते हुए - एक गहरी खाई की तरफ ले जा रहा था ताकि वो उसकी लाश को ठिकाना लगा सके।)
राज अब दो घंटे पहले की दिव्या को याद करता है जिसने उसे गले लगाकर कहा था न जाने ये मौका फिर कभी मिलेगा या नही।
( राज की आंखे हल्की सी खुली....और उसे दर्द महसूस हो रहा था । उसने आसमान की तरफ देखा पेड़ तेजी से पीछे की ओर भाग रहे थे। और काले आसमान में चाँद राज के साथ तेजी से चल रहा था। उसने आंखे पूरी तरह खोली तो पाया राजीव उसके पैर पकड़कर लगातार तेजी से आगे बढ़ रहा था। कभी कभी किसी पत्थर पर राज अटक जाता तो पसीना पसीना हो चुका राजीव एक जोर का झटका दे देता। राज के कपड़े फट चुके थे। और पीठ में रगड़ के लाल निशान प्रत्यक्ष नजर आ रहे थे।
राजीव खाई के नजदीक आ चुका था। थोड़ा रुका और खुद के पसीने को पोछते हुए बैठ गया वो थक चुका था। उसे लगा राज मर चुका है।
...राज ने देखा कि राजीव बैठ गया है और उसका ध्यान मेरी तरफ नही है। राज की नजर एक मोटे से डंडे पर पड़ी राज लडखडाते हुए उठा और लाठी को उठा लिया। राजीव को कुछ सरसराहट की आवाज सुनाई दी क्योकि सुनसान जंगल था पत्ता भी हिले तो आवाज आ जाती है। उसने देखा तो राज खड़ा था उसके हाथ मे मोटी लाठी थी। राजीव संभल पाता उससे पहले उसे उसकी तरफ आ रहे लाठी के हवा को चीरने की आवाज साथ मे राज के चीखने की आवाज के साथ खुद के सिर पर जोरदार लकड़ी के टकराहट की आवाज तीनो की मिश्रित ध्वनि सुनाई दी।
अब राज अपना निगला हुआ सारा गुस्सा निकालने लगा
और राज राजीव के सिर पर, कभी पीठ पर एक के बाद एक जोर जोर से वार करता है। फिर थोड़ी दूर खाई तक मार मार के ले जाता है । राज को दिव्या का मासूम चेहरा। उसकी हर मुलाकात। और उसके लास्ट टाइम अकेले छोड़कर जाने से रोकना याद आ रहा था और फिर लास्ट बार पंखे पर लटकी दिव्या नजर आयी तो उसने एक जोरदार धक्का राजीव को मारा और वो गहरी खाई में समा गया। फिर राज खुद के सिर को पकड़कर घुटने के बल बैठकर रोने लगा। राजीव ऐसी जगह गिरा था जहाँ उसे ढूंढना नामुमकिन था। ।
(अभी राज पुरानी बात अंकल को बताते हुए फिर रोने लगा)
राज - उसके बाद में घर गया घर जाते जाते सुबह हो गयी थी । घर जाकर नहाया ताकि खून , मिट्टी न दिखे। थोड़ी देर बाद आपका फोन आया।
शास्त्री जी- बेटा तुमने जो किया सब अच्छा नही किया। तुम उसे कानून के हवाले भी कर सकते थे।
राज- कोई फायदा नही अंकल जी, मेरे मन को शांति नही मिलती ना दिव्या की आत्मा को।
शास्त्री जी- खैर जो हुआ उसे भूल जाओ और ये बात मेरे तेरे बीच रहनी चाहिए । किसी को मत बताना।
राज- दिल की बात बताक़र मन हल्का करना था वो कर लिया। अब किसी को नही बताऊंगा। और जहाँ तक बात है भूलने की, ये बात में भूल भी जाऊंगा लेकिन दिव्या को कैसे भुलाऊंगा।
शास्त्री जी- संजना से शादी कर ले, तू कहे तो मैं उसके पापा और तेरी मौसी से बात करूंगा।
राज- नही अंकल जी। दिव्या मुझसे प्यार करती थी। वो मुझे किसी और के साथ देख नही पाएगी।
शास्त्री जी- नही बेटा, वो तुझसे प्यार करती थी इसलिए तुझे खुश देखना चाहेगी।
राज- मैं नही रह पाऊँगा, संजना के साथ खुश ना कभी उसे खुश रख पाऊंगा। मैं दिव्या के पास चला जाऊंगा,
शास्त्री जी- (डाँटते हुए)पागलो जैसी बात मत कर……
राज- (मुस्कराते हुए शास्त्री जी के गोद मे सिर रखता है और लेट जाता है।) वो मुझे बुला रही थी।
(राज और शास्त्री जी की बात जोशी जी चुपके से सुन रहे थे और उसके बाद वहां से आंसू पोछते हुए चले गये उन्हें खुद की गलती का एहसास हुआ कि उसने राज पर गलत शक किया। )
शास्त्री जी-(उसके सिर में हाथ फेरते हुए) तू क्या बोल रहा है पता है तुझे आराम की जरूरत है।
राज- (बहते हुए आंखों को पोछते हुए) मैं जानता हूँ मैं क्या बोल रहा हूँ वो मेरा इंतजार कर रही होगी। अब हमारी मुलाकात जन्नत में होगी । वो मुझे जिस दिन खुद गयीये मतलबी जहां छोड़कर उसी दिन से पुकार रही है। जब राजीव मुझे घसीट के ले जा रहा था तो मैंने दिव्या को देखा था।
शास्त्री जी- (उसकी हालत समझते हुए वो समझ गए थे कि राज के हां में हां मिलाने में फायदा है।) क्या बोल रही थी।
राज- वो बोली.......(राज एकाएक हिचकी लेते हुए रुक जाता है )
शास्त्री जी- क्या बोली बताओ।
राज- (मुस्कराते हुए) देखो अभी भी मुझे याद कर रही है। हिचकी आयी मुझे………
शास्त्री जी- हां तुझे याद रोज किया करेगी और आया भी करेगी
राज- (बच्चो की सी जिज्ञासा से) -क्या वो आपको भी याद आएगी अंकल
शास्त्री जी- हम सबको याद आएगी।
राज - (कुछ गुनगुना रहा था)
"""""सपनो का संसार
""""तूने दिखाया
"""""हँसना भी रोना भी
"""""तूने सिखाया
""""""""""""" क्यो पास मुझे बुलाके'
"""""""''''''''""""खुद दूर मुझसे जाके'
"""""" कहा था हँसना सदा
""""""खुद चली गयी रुलाक़े,
"""मुझको रुलाक़े……
"""तू चली गयी कहाँ…………आ..…आ
"""ढूंढा जमीं और ढूंढ लिया आसमां………
(ऐसे ही अनसुने गाने गुनगुनाते रहता था
राज जैसे पागल हो चुका हो दिन रात उसके सपने में दिव्या आती थी। और राज को यही लगता था वो उसे जन्नत में बुला रही है। )
******* ** THE END ** ******
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06-Sep-2021 03:21 PM
ओह माय गॉड...सोचा नही था ऐसा अंत होगा कहानी का.....वाकई में इंटरेस्टिंग कहानी..!लेकिन राज के साथ गलत हुआ....बेचारा अधर में लटक गया...
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