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लेखनी प्रतियोगिता -16-Dec-2022

 मन बावरा


चितवन मे बसे 
कोई जाये ना 
मन से दुर 

हम बावरे 
होये जा रहे
मन का भेद 
ना खोल 

मन हे असंख्य 
विचारों का धनी 
रहता हर वक्त 
जिसमे अंधेरा 

बावरा होकर 
भी हे ठहरा 
मन को भाये 
सुबह -सवेरा 
-अभिलाषा देशपांडे


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4 Comments

Sachin dev

19-Dec-2022 02:07 PM

Nice

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Gunjan Kamal

19-Dec-2022 11:08 AM

बहुत सुंदर

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Abhinav ji

17-Dec-2022 08:52 AM

Kaha hai mam

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