उत्तराखंड के एक छोटे से गांव का, एक बहुत ही सुनसान बस स्टॉप था।
इस बस स्टॉप पर एक ही बस आती थी। और वह भी एक डेढ़ घंटे के समय के बाद। यह बस स्टॉप गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर था। बस स्टॉप तक पैदल ही पहुंचना पड़ता था। बस स्टॉप के आसपास पहाड़ियां थी ,और घना जंगल था। बस स्टॉप का रोड दूर तक सुनसान रहता था।
शहर के बाजार और रेलवे स्टेशन तक, जाने के लिए यह अकेला एक ही बस स्टॉप गांव वालों के लिए था।
इस बस स्टॉप के पास वाले गांव में, संजना नाम की लड़की अपनी दादी और छोटे भाई गणेश के साथ रहती थी। संजना के माता पिता का स्वर्गवास हो चुका था।
दादी को संजना के दादा की, सरकारी नौकरी की पेंशन हर महीने मिलती थी। दादी की पेंशन से ही घर का खर्च चलता था।
दादी जब महीने में शहर के बैंक पेंशन लेने जाती थी, तो हर बार संजना और गणेश साथ चलने की जिद्द करते थे। लेकिन सुनसान सुनसान बस स्टॉप की वजह से दादी उनको साथ लेकर नहीं जाती थी। उनकी जगह गांव के किसी जिम्मेदार युवक या व्यक्ति के साथ शहर के बैंक पेंशन निकालने जाती थी।
संजना की दादी अंधविश्वासी थी संजना के पड़ोस में एक सिद्धार्थ नाम का लड़का रहता था। सिद्धार्थ और संजना 11वीं कक्षा में साथ ही पढ़ते थे। और एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे। सिद्धार्थ के परिवार वाले और संजना की दादी भी सिद्धार्थ के साथ ही संजना की शादी करवाना चाहती थी।
जब कोई भी छोटा बड़ा त्यौहार होता था। तो दादी अपने घर के आंगन के चूल्हे पर खीर पूरी आलू की सब्जी बनाती थी। जब दादी चूल्हे पर खीर पूड़ी सब्जी बनाती थी, तो संजना का छोटा भाई गणेश गरम शॉल ओढ़कर दादी के पास बैठ जाता था। और गरम गरम पूरी सब्जी खाता रहता था। और सबकी बातें सुनता रहता था।
दादी अलग-अलग तालियों में संजना और सिद्धार्थ को भी गरम गरम पूरी सब्जी देती थी। सबके खाना खाने के बाद दादी चूल्हे से आग निकालकर घर में ले जाती थी, ताकि घर गरम रहे।
पूर्णमासी की चांदनी रातों में पहाड़ और गांव के घर के आंगन बहुत ही सुंदर दिखते थे, संजना और सिद्धार्थ को चांदनी रातें बहुत प्रिय थी।
उनका गांव छोटा था लेकिन गांव के लोगों में प्यार प्रेम बहुत ज्यादा था। गांव के लोग एक दूसरे की दुख मुसीबत में सदा साथ देने के लिए तैयार रहते थे।
दादी का जीवन इन तीनों के साथ बहुत हंसी खुशी से कट रहा था।
कुछ समय बीतने के बाद सिद्धार्थ के परिवार वाले और दादी संजना सिद्धार्थ की सगाई का दिन पक्का कर देते हैं।
सगाई की तैयारियों का सामान खरीदने के लिए दादी शहर के बड़े बाजार जाने का फैसला लेती है। लेकिन दादी के साथ जाने के लिए गणेश जिद पर अड़ जाता है। गणेश की जीत देखकर संजना और सिद्धार्थ भी दादी के साथ शहर के बाजार जाने की जिद करने लगते हैं। मजबूर होकर दादी इन को साथ ले जाने के लिए तैयार हो जाती है।
और यह सब जब दूसरे दिन बस स्टॉप पर पहुंचते हैं, तो सुनसान बस स्टॉप देखकर गणेश डरने लगता है। गणेश को डरता हुआ देख संजना और सिद्धार्थ को भी थोड़ी घबराहट महसूस होने लगती है।
कुछ ही देर बाद सामने से इन सबको शहर जाने वाली बस दिखाई देती है। जैसे ही बस इनके पास आती है, इनका एक काली बिल्ली रास्ता काट देती हैं। दादी बहुत ही अंधविश्वासी थी, इसलिए तीनों बच्चों को बस में चढ़ने से मना करती है।
बस के जाने के बाद जब संजना और सिद्धार्थ दादी को अंधविश्वास ना करने की सलाह देते हैं। और कहते हैं कि "अंधविश्वास से किसी की जान भी जा सकती है" तो दादी उनको उल्टा ही चुप करवा देती है।
और कुछ ही क्षणों में पहाड़ों के घने जंगलों से एक आदमखोर चीता संजना और सिद्धार्थ पर हमला कर देता है। उसी समय सामने से कुछ गांव के यात्री आकर दादी और गणेश को तो बचा लेते हैं, लेकिन सिद्धार्थ और संजना की जान चली जाती है।
सिद्धार्थ और संजना खून में लथपथ सड़क पर गिरकर अपना दम तोड़ देते हैं। उनकी मौत से दुखी होकर और पछता कर दादी कहती है "आज मेरे अंधविश्वास की वजह से मेरे बच्चों की जान चली गई।"
Rakesh rakesh
23-Dec-2022 01:09 AM
👌👌👌👌
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shweta soni
22-Dec-2022 06:26 PM
👌👌👌
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Punam verma
22-Dec-2022 08:34 AM
Very nice
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