कौन हो तुम
कौन हो तुम
कौन हो तुम क्या कभी जान पाए,
खुद के बारे में क्या पहचान पाए।
सोचती हैं बहुत कुछ जानती हूं मैं भी,
खुद को पहचानती हूं मैं शायद नहीं।
मैं नहीं मानती पहचानते हो तुम
दावा तुम करते हो मैं जिंदा दिल इंसान हूं
सबको साथ लेकर चलता हूं
सुख दुख में सब का ध्यान रखता हूं।
नहीं जरा चारों ओर अपनी देखो
वक्त के साथ बदलते हो तुम।
जरा सी परेशानी क्या आई।
सबसे पहले मून बोलते हो तुम।
फिर घमंड किस बात का
क्यों कहती हो लोग बदल रहे हैं।
नहीं जैसे तुम वैसे सब
सब अपना-अपना भोगते हैं।
कोशिश करो खुशियां बांटने की
जहर बांटोगे तो खुशियां कहां से पाओगे।
क्या तुम कुछ लेकर आए थे,
क्या कुछ लेकर जाओगे।
पहचान लो तुम मे को,
वरना मैं ही मैं मर जाओगे।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
20.12.2022
Shashank मणि Yadava 'सनम'
14-Mar-2023 05:04 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति
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Madhu Gupta "अपराजिता"
22-Dec-2022 10:47 AM
बहुत सुंदर रचना 👌👌👌
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Swati chourasia
22-Dec-2022 06:53 AM
बहुत ही सुंदर रचना 👌
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