पैगाम

पैगाम


एक खत, एक चिट्ठी, एक पैगाम मिला

किसी गम के मारे को जैसे जीने का सामान मिला

मिला कुछ ऐसे जैसे प्यासे को झरना मिल जाए

धूप में थकते राही पर आंचल का साया लहराए।


कहने को तो बस चंद शब्द ही थे

लेकिन उसका अक्स उभर आया

चूम के खत को बार बार तह कर कलेजे चिपकाया

मां को बेटा, बीवी को अपना शौहर नजर आया।


उस खत में बिखरे थे खुशियों के कितने अफसाने

एक एक लफ्ज़ से उठते थे सौ सौ मस्त तराने

दूर देश की माटी से उसकी सौंधी खुशबू आई

खत में लिपटी तस्वीर जो थी, उसे देख नजर फिर भर आई।


ये खत नहीं एक वादा था, जो अभी उसे निभाना था, 

मां की आस और बापू का कर्ज चुकाना था

थे कितने ही सारे सपने, जो अपनों ने बुन रखे थे

कुछ खुली आंख से देखे थे, कुछ बंद नजर पर अपने थे।


ख्वाबों और ख्यालों में रंग बहुत से बिखराए

सात समंदर पार से जब अपनों की कोई खबर आए,

रोज रात हम पढ़ते हैं खत प्रेम के छुप छुप कर
रहते हैं भीगे से पन्ने तकियों की सिलवट ही बनकर।।

आभार – नवीन पहल – २२.१२.२०२२❣️❣️

# प्रतियोगिता हेतु 


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6 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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Gunjan Kamal

23-Dec-2022 05:52 PM

शानदार

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Sachin dev

23-Dec-2022 04:47 PM

Very nice

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