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लेखनी प्रतियोगिता -23-Dec-2022- अनोखी रीत

कैसी रीत बनाई है...

जिस घर में पली,
वहीं आज पराई है।

जहां ब्याह कर गई, 
वहां ना प्रीत पाई है।

कहते हैं कि तू ना हमारी अपनी...
तू तो बाहर से आई है।

जिन लोगों पर विश्वास कर अपना घर छोड़ दिया,
वहां ना खुद की कोई कीमत पाई है।

छोटी छोटी ख्वाहिशों का गला घोंट,
उसने अपने रहने लायक जगह बनाई है।

अपने रिसते जख्मों पर 
खुद ही मलहम लगाई है।

पर बस.... अब उसने झुकना छोड़ दिया!!!
दोगले रिश्तों से मुंह मोड़ लिया।

जो कभी अपने हो नहीं सकते, 
उनसे उम्मीद करना छोड़ दिया।

क्यों वो हर जिल्लत सहे,
रोज़ अपमान के घूंट पिए।

जब प्यार ही नहीं रिश्तों में
तो क्यों तुम्हारी परवाह करे।

जिसका हाथ पकड़कर आई थी
उस आंगन में,
उसकी चुप्पी की कीमत चुकाई है।

तुम्हारी चुप्पी की बदौलत ही,
आज उसके चेहरे पर खामोशी छाई है।

गर सुध लेते उसके आंसुओं की,
तो होती ना कभी पराई वो।

तुम्हारे परिवार के दंभ की खातिर,
उसने अपनी बलि चढ़ाई है।

जिन गलियों में बचपन बीता
वहां खड़ी आज सकुचाई है।

जिस घर में जन्म लिया,
रसम वहां आज पराई है।।


                 *****Samridhi Gupta 'रसम'*****


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3 Comments

Sachin dev

24-Dec-2022 06:41 PM

Shandar 👍🌺

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Punam verma

24-Dec-2022 09:47 AM

Veey nice

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