Sunita gupta

Add To collaction

दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय गीत लिखती रहूंगी

गीत लिखती रहूंगी जहां के लिए
साथ मे आपकी जो दुआंए भी है।
काम केवल दुआओं से चलता नही,
काम करने की हममें अदांए भी है।

रोग मन मे लगे ,रोग तन मे लगे ,
रोग ही दुश्मनों से बड़ा शत्रु है।
रोग मिट जाएगे है तसल्ली हमें
खूबसूरत मिली जो दवाएं भी है।

शब्द तो लग रहे हैं प्रदूषित यहां ,
श्वास लेना बहुत ही कठिन हो रहा।
जान लेवा हवाएं वहें हर तरफ,
शुद्ध होती प्रवाहित हवाएं भी हैं।

होंठ हिलते तो अक्षर लगे नाचने ,
मुस्कुराने से शब्दों का जंगल हंसे।
तेरे मुख से झरे वाक्य है जो प्रिय,
सरिता वेदों की सच्ची ॠचांए भी है।

सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर

   22
6 Comments

बेहतरीन

Reply

Sachin dev

30-Dec-2022 04:28 PM

Nice

Reply