Sarfaraz

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ग़ज़ल

🌹🌹🌹🌹ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹

हमसे इतर जो थे वो समझदार लोग थे।
हम से तो तेरी बज़्म में दो चार लोग थे।

जो चापलूस थे वो थे मसनद नशीं मगर।
मसनद से दूर जो थे वो ख़ुद्दार लोग थे।

तक़दीर का है खेल या तदबीर की कमी।
पीछे खड़े हैं सबसे जो त़र्रार लोग थे।

बेफ़िक्र हो के सोए जो सोते ही रह गए।
मन्ज़िल उन्होंने पाई जो बेदार लोग थे।

यूँ भी पसंद आ न सके हम उन्हें कभी।
हम थे ग़रीब और वो ज़र्दार लोग थे।

मैं सादगी पसन्द था वापस यूँ आ गया।
मेह़फ़िल में तेरी सारे अदा कार लोग थे।

सारे के सारे शायरी करने लगे फ़राज़।
जो भी यहाँ पे आपसे ग़म ख़्वार लोग थे।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद उ0 प्र0।

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3 Comments

Varsha_Upadhyay

03-Jan-2023 08:34 PM

शानदार

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Sachin dev

01-Jan-2023 01:57 PM

Well done

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बहुत खूब

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