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रिश्ते -31-Dec-2022

प्रतियोगिता हेतु
दिनांक:31/12/2022
विषय: रिश्ते 
घुल चुका ज़हर इतना कि अब ना गुंजाइश रही,
किसी भी रिश्ते में कोई वफादारी ना रही।
जहाँ देखो वहीं साजिशे , कड़वाहटें और रूसवाईयाँ...
अब कोई दवा या मलहम की सिफारिश ना रही।।

जिस पर इतराते हम कि वो हमारा अपना है,
उस पर भी अब अपना कोई बस नहीं चलता।
झूठ में लिपटी एक कहानी है यह रिश्ता
अब इस पर हमारी कोई हुकूमत ना रही।।

फरेबी रिश्ता जिस पर किया था ऐतबार बहुत,
दिलों जान से चाहा था किया था भरोसा बहुत।
चुभने लगा कांटो की तरह वो अब प्यार मुझे,
उस प्यार में अब कोई सच्चाई ना रही।।

शाहाना परवीन "शान"...✍️ 

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2 Comments

Sachin dev

31-Dec-2022 06:31 PM

Nice

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Abhilasha deshpande

31-Dec-2022 10:02 AM

Nice mam

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