लेखनी प्रतियोगिता -31-Dec-2022 लालच बुरी बला है
शीर्षक = लालच बुरी बला है
ज़ब से खालिद जी के पास उनकी बहन का फ़ोन आया था, तब से वो बहुत गुमसुम से हो गए थे, मानो किसी कश मकश में खुद को उलझा लिया हो, यही वजह थी की आज तो उन्होंने नाश्ता भी नही किया और घर के बाहर बने अपने बगीचे में बैठ गए, उन्हें देख कर लग रहा था कि मानो वो अपने गुज़रे समय को याद कर रहे थे
तब ही अचानक उन्हें अपने कांधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ, उन्होंने पलट कर देखा तो उनका बड़ा बेटा, उनके पीछे खड़ा था , वो कुछ कहते तब ही उनका बेटा अबरार बोल पड़ा
क्या बात है, पापा? दो दिन से हम सब देख रहे है , आप ना तो ठीक से खा रहे है और ना ही कुछ पी रहे है, आप चाहे तो मुझे बता सकते है जिस तरह मैं आपसे अपनी बात साँझा करता हूँ, आप भी मुझे बता सकते है, शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ,
"मुझे अच्छा लगा कि तुम यहाँ आये, आओ बैठो मेरे पास, मुझे तुम्हे कुछ बताना है " खालिद जी ने कहा
"ये लीजिये बैठ गया, अब बताइये, आखिर क्या बात है? जिसने आपको इतना परेशान कर रखा है, कि ना आप ठीक से खा रहे है और ना ही पी रहे है , और आज तो नाश्ता भी नही किया आपने इसलिए मैं आपको बुलाने आया था , ताकि आप नाश्ता कर ले, लेकिन अब मुझे लगता है , नाश्ते से ज्यादा मेरे लिए अहम् बात ये जानना है कि आखिर आप इतना परेशान क्यू है? जबकी अब परेशानियों ने हमारे घर को छोड़ दिया है " अबरार ने कहा अपने पापा के पास बैठते हुए
खालिद जी ने अपने बेटे कि तरफ देखा और बोले " तुम जानना चाहते हो मेरी इस तरह ख़ामोशी कि वजह तो सुनो, दो दिन पहले तुम्हारी फूफी ( बुआ ) का फ़ोन आया था , जो कुछ भी उन्होंने मुझे बताया उसे सुनने के बाद मैं समझ नही पा रहा हूँ, कि मुझे खुश होना चाहिए या उदास, तुम्हारी फूफी ने वो खबर सुना कर तो मुझे कश मकश में डाल दिया है , समझ नही आ रहा क्या करू और क्या ना करू "
"ऐसा भी क्या हुआ पापा? जिस बात को लेकर आप इतना परेशान हो रहे है, मुझे बताइये ताकि मैं कुछ मदद कर सकूँ, वैसे मुझे आपसे ज्यादा तो जिंदगी का तजुर्बा नही है, लेकिन जितना भी है वो सब आपको देख कर ही सीखा है, किस तरह आपने हम सब भाई बहनो कि परवरिश कि है, किराये का घर और एक छोटी सी नौकरी करके आपने हम सब को किस तरह अपने पैरों पर खड़ा कर इस काबिल बना दिया कि आज हम उस किराये के घर से निकल कर इस अपने घर में आ गए है, हालातों से किस तरह समझदारी के साथ जूझना होता है ये सब मैंने आपसे ही सीखा है, आपको मैंने आज से पहले कभी भी इस तरह नही देखा जैसा आज देख रहा हूँ, जरूर कोई तो ऐसी बात है जो आपको अंदर ही अंदर परेशान कर रही है, " अबरार ने कहा
खालिद जी ने अपने बेटे कि तरफ देखा और बोले " सही कहा बेटा, शायद आज से पहले मैं कभी इतनी बडी आजमाइश से गुज़रा नही, जहाँ मुझे गलत और सही में से किसी एक को चुनना पड़े ,
बेटा बात कुछ इस तरह है, कि तुम्हारी फूफी ने मुझे तुम्हारे चाचा के बारे में बताया , खालिद जी और कुछ कहते तब ही अबरार बोल पड़ा
चाचा के बारे में, लेकिन क्या? आप अनवर चाचा कि बात कर रहे है ना, जिन्होंने हम सब को उस हाल में डाला था जिसके हम लोग हक़दार नही थे
हाँ, बेटा मैं तुम्हारे अनवर चाचा की ही बात कर रहा हूँ, उसी चाचा और उसी अपने भाई की जिसने ना तो भाई का फर्ज़ निभाया और ना चाचा का और ना ही मामा होने का, नही पता उसने वो सब क्यू किया? जिसके खातिर हमें इतनी तकलीफ का सामना करना पड़ा और तो और तुम्हारी फूफी को भी उनके ससुराल में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा , खालिद जी अपनी बात को आगे बढ़ाते उससे पहले ही अबरार बोल पड़ा
तो अब क्या चाहिए चाचा को हमसे? अब क्यू फूफी ने उनके बारे में ज़िक्र किया है ? सब कुछ तो वो कई साल पहले ही धोखा धड़ी से ले चुके है, अब और क्या लेना है उन्हें? अम्मी बता रही थी की उनका सारा दहेज़ का समान भी उसी घर में था , जिसे चाचा ने रातो रात बेच दिया था , हम सब की कितनी यादें जुडी थी उस घर से और उन्होंने लालच में आकर रातो रात उस घर को धोखा धडी से बेच दिया, अब क्यू आप और फूफी उनका ज़िक्र करके पुराने जख्मो को हरा कर रहे है
जाने भी दे,हमें अब उनसे क्या लेना देना अब हम लोगो ने खुद को संभाल लिया है
"बेटा पूरी बात तो सुनो, तुमने तो फैसला ही सुना दिया एक दम से, मैं मानता हूँ, मेरे छोटे भाई ने लालच में आकर उस घर को बेच दिया जहाँ ना की सिर्फ तुम्हारी यादें जुडी थी हम तीनो बहन भाइयो की भी यादें जुडी थी, हमारा तो बचपन वही गुज़रा था, उसी गली गूँचे में खेल कूद कर और उसी के आँगन में लगे नीम के पेड़ पर झूला झूल कर,
और उसी आँगन में तुम्हारी दादी के हाथ की चूल्हे की गरमा गर्म रोटियां खा कर, कितना प्यार था हमारा बचपन, बचपन से ही तुम्हारा छोटा चाचा और मेरा और तुम्हारी फूफी का छोटा भाई अनवर उसे बचपन से ही ना जाने क्यू, सब कुछ ज्यादा ही चाहिए था, अम्मी कुछ भी बनाती तो वो हम लोगो का भी हिस्सा खा जाता था
हम भी बड़े होने के नाते, अपने छोटे भाई को इस तरह मांगते नही देख सकते थे, इसलिए उसे अपना हिस्सा भी दे देते जो भी तुम्हारी दादी मेरे और तुम्हारी फूफी के लिए बचा कर रखती
लेकिन कौन जानता था, की उसकी बचपन की आदत बड़े होकर लालच में तब्दील हो जाएगी और लालच की बला उसे इस तरह अपनी चपेट में ले लेगी की उसे ना अपने बड़े भाई का ही ख्याल आएगा और ना ही बडी बहन का
पहले तो उसने अपनी मर्ज़ी से एक नाच गाने वाली से शादी कर ली, जिसे उसकी नादानी में की गयी भूल समझ कर माफ कर दिया गया लेकिन नही जानते थे की जिसे हम नादानी समझ रहे थे वो तो एक तूफान को अपने अंदर समेटे बैठा था, अच्छा होता बचपन में ही उसे उसके लालच पर हमने बड़े होने के नाते उसे एक दो थप्पड़ लगा दिए होते तो शायद वो सुधर जाता और उसको लालच करने की आदत भी न पडती, कही ना कही हम सब उसके उस लालच को बढ़ावा देने में भागीदार रहे
उसका लालच, एक दिन हमसे सब कुछ छीन लेगा हमने सोचा नही था, नही जानते थे की हम जिसे छोटा भाई समझ कर उसकी गलतियों को नादानी और नासमझी का रूप दे रहे है, बल्कि वो भाई नही एक सपोला था जो एक दिन हमें डसने वाला था और उसने डसा भी
और हमसे हमारा वो घर उस घर से जुडी यादें सब छीन ली और रातो रात हम सब को पैदल करके दुसरे शहर भाग गया
उसने एक बार भी नही सोचा की आखिर उन लोगो पर क्या गुज़रेगी, ज़ब उनकी छत उनके सर से उतर जाएगी, उनके बच्चें कहा रहेंगे, उसकी बहन जिसका हिस्सा भी उस घर में था, ये बात ज़ब उसके ससुराल में पता चलेगी तब उसके साथ किस तरह का सुलूक होगा, किस तरह के ताने उसे सुनने को मिलेंगे, इन सब का एक बार भी नही सोचा उसने, अपने लालच के चककर में उसने सारे रिश्तों को उठा कर ताक में रख दिया और रातो रात उस घर का सौदा कर हम सब से नाता तोड़ भाग गया " खालिद जी कहते कहते रुक जाते है ,उनका गला भर आया था, अपने भाई के बारे में बताते हुए
"इतना सब कुछ किया उन्होंने आपके साथ, और आप हो की उनकी वजह से खुद को परेशान कर रहे है, अब जाने भी दीजिये, अब हमें उनसे क्या लेना देना, ज़ब अल्लाह ने हमें इतना सब कुछ दे दिया है , हमारा अपना घर है, मुझे भी पढ़ लिख कर एक सरकारी नौकरी मिल गयी, हमारी बहन भी अपने घर की हो गयी, अब हमें चाचा से क्या लेना देना, छोड़िये अब उन्हें और उनकी बातों को जो जख्म उन्होंने हमें दिए थे, वो अब समय ने भर दिए है , आइये नाश्ता करते है, भूख लगी होगी आपको " अबरार ने कहा
"बेटा, आगे की कहानी तो सुन लो ये तो जान लो की आखिर इतने सालों बाद अपने उस भाई का ज़िक्र क्यू करने बैठा हूँ, जो बरसो पहले हमें डस कर भाग गया था , बेटा भले ही छोटे अपने बड़ो को कुछ ना समझें लेकिन बड़ो के लिए उनके छोटे बहन भाई, उनकी औलाद की तरह होते है, जिन्हे चाह कर भी वो अपने से दूर नही कर सकते ,
ज़ब उन्हें कोई तकलीफ होती है, तब दर्द हमें ही होता है, जिस तरह शरीर के किसी भी अंग में चोट लगने से पूरा शरीर उस दर्द की पीड़ा से तड़पता है , उसी तरह ज़ब कोई अपना भी किसी ऐसी बीमारी में मुबतिला हो जहाँ से उसे उसकी मौत साफ दिखाई दे रही हो, तब उसके अपनों को वही दर्द और वही पीड़ा होती है, जो उसके किसी अंग में में दर्द या पीड़ा होने पर होती है
बेटा तुम्हारे अनवर चाचा, मौत की कगार पर खड़े है, जो कुछ भी उन्होंने हमारे साथ किया, खून के रिश्ते में दगा की, आज उन्हें उनके उन सब गुनाहो की सजा खुदा ने एक साथ दे दी, बेटा तुम्हारी फूफी ने बताया है की तुम्हारे चाचा को कैंसर है , और वो भी आख़री पायदान पर, जिसमे ना तो दवा ही काम आती है और ना ही दुआ बस कुछ चाहिए होता है तो वो अपनों का साथ, उनके साथ की गयी ज़्यादती की माफ़ी मांगना ताकि मौत के बाद का सफऱ आसान हो सके, क्यूंकि खुदा भी ऐसे बन्दे को तब तक माफ नही करता है , ज़ब तक वो उस इंसान से माफ़ी ना मांग ले जिसके साथ उसने बुरा किया हो
बेटा, अब तुम ही बताओ, मेरी इस कश मकश को किसी तरीके से सुलझाओ की मुझे अपने भाई द्वारा दिए गए जख्मो को एक तरफ रख कर उसके पास जाना चाहिए या फिर अपनी अना के खातिर उसे यूं ही मरता छोड़ देना चाहिए, उससे एक बार मिलना नही चाहिए , ज़ब वो दुनिया से जा रहा हो " खालिद जी ने कहा और उनकी आँखों से आंसू बहने लगे
अबरार ने उन्हें संभाला और उनके आंसू साफ करते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा " पापा! मैं खुद इस बात का फैसला करने में अभी छोटा हूँ, की आपको चाचा के पास जाना चाहिए या नही, लेकिन मैं इतना जानता हूँ की जो भी कुछ उन्होंने किया, अपने लालच के चलते अपने रिश्तों को एहमियत देने के बजाये कागज के नोटों को सब कुछ समझा, उसकी सजा उन्हें खुदा ने सूत समीत वापस देदी, हम सब के सर की छत छीन कर अपना आशयाना बसाने चले थे , आज खुदा ने उनका सब कुछ छीन लिया और वो इस तरह मौत के पायदान पर खड़े है, जहाँ उन्हें अपने सारे गुनाह याद आ रहे होंगे और उसी वजह से वो आप और फूफी से माफ़ी मांगना चाहते है
पापा, जहाँ तक मुझे लगता है, आप और फूफी को उन्हें माफ कर देना चाहिए ताकि उनके आगे का सफऱ आसान हो सके, ज़ब तक आप उन्हें माफ नही करेंगे ज़ब तक खुदा भी उन्हें माफ नही करेगा, हम सब ने देख लिया और अच्छी तरह समझ लिया की लालच करने वालों का अंजाम कितना बुरा होता है और सब्र और शुक्र करने वालों को खुदा अपने खजानों से किस तरह उन्हें नवाजता है, जिस तरह उसने हमें नावाज़ा जिस चाचा ने हमसे हमारा सब कुछ छीन लिया धोखे से आज वो सब कुछ हमारे पास है और वो मौत के आख़री पायदान पर खड़े होकर माफ़ी की गुहार लगा रहे है, आपके लिए आसान तो नही होगा उन्हें माफ करना लेकिन भलाई इसी में है की उन्हें माफ कर दिया जाए, जो हमारा था वो हमें मिल गया तो अब उन्हें माफ ना करके उनके मौत के सफऱ को मुश्किल क्यू बनाना, और आप भी बाद में अफ़सोस करते रहेंगे की अपने भाई से एक बार मिल तो लिया होता, उसे माफ करदेता तो बोझ हल्का हो जाता "
खालिद जी ने अबरार को गले से लगाया और बोले " तुमने छोटी उम्र में बहुत बडी बात कही है, मैं भी उसे माफ कर देना चाहता था, लेकिन जो उसने किया वो सब सामने आ रहा था मेरे और मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे, लेकिन अब तुमसे बात कर मुझे अच्छा लगा, अब मैं उसे आसानी से माफ कर सकूँगा, क्यूंकि जो कुछ उसने मुझसे छीना था वो सब मुझे मेरे खुदा ने वापस लोटा दिया, तुम जैसी नेक औलाद देकर, अब मुझे उसे माफ करने में कोई परेशानी नही, मैं अभी ही तुम्हारी फूफी को लेकर उसके पास जाऊंगा, आखिर वो मेरा भाई है उसके साथ बचपन से जवानी तक का सफऱ तय किया था, अब उसे इस तरह उसके आख़री सफऱ में तन्हा तो नही छोड़ सकता हूँ "
पहले नाश्ता कीजिये, उसके बाद जाइये मैं भी चालूँगा, इन ज़मीन जायदाद के चककर में आख़री बार चाचा से ज़ब मिला था ज़ब मैं बारह साल का था और हम उनसे जुदा हो रहे थे
और आज वो हमें छोड़ कर जाने वाले है, हमेशा हमेशा के लिए, जहाँ से वो लोट कर भी नही आ सकते है
प्रतियोगिता हेतु
आँचल सोनी 'हिया'
04-Jan-2023 10:10 PM
Good
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Gunjan Kamal
03-Jan-2023 11:50 AM
बहुत ही सुन्दर
Reply
Abhinav ji
01-Jan-2023 08:53 AM
Very nice👍👍
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