दैनिक प्रतियोगिता हेतु विषय नव वर्ष की शुरुआत
01 जनवरी 2023
नये पुराने के चक्कर में, निकल गए कई वर्ष।
देखा- परखी करते करते, हुआ न कुछ उत्कर्ष।।
नई काया जो हुई पुरानी, स्वयं है रहने वाला।
काया है माया की छाया, स्वयं जानने वाला।।
स्वयं जानने के लिए, मिली थी हमको काया।
काया अंदर स्वयं विराजे, बाहर थी सब माया।।
बाहर - बाहर देखे - परखे, अंतर मार्ग न पाई।
जब तक अंदर झांक सके न देती नही दिखाई।
स्वयं रहत काया कोठी में, कोठी है अनमोल।
जिस क्षण कोठी खाली होती,तब समझेगा मोल।।
न समय की कद्र की, न स्वयं को पहचाना।
नये पुराने के चक्कर में, तय है जीवन जाना?
जीवन जाए उसके पहले, हेतु है कुछ खास।
आए थे हरि भजन को, औटन लगे कपास?
जीवन निश्छल जीना ऐसे जैसे सरिता धारा।
करना सबसे प्यार सभी में ईश्वर बसे हमारा।
सुनीता गुप्ता'सरिता'कानपुर
Shashank मणि Yadava 'सनम'
13-Jan-2023 03:17 PM
Waaah लाजवाब लाजवाब लाजवाब
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आँचल सोनी 'हिया'
04-Jan-2023 09:52 PM
Good
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Varsha_Upadhyay
03-Jan-2023 08:29 PM
शानदार
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