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कच्ची माटी से बचपन को

*गीत*(16/14)
कच्ची माटी से बचपन को,
गढ़-गढ़ कुंभ बनाना है।
जीवन रूपी सुदृढ़ कलश से,
पावन नीर पिलाना है।।

बने कलश वह इतना पक्का,
ठोकर-घात सके वह सह।
धूल भरे अंधड़ में उससे,
पावन नीर सके नित बह।
शुद्ध नीर से सिंचित कर के,
जीवन-पुष्प खिलाना है।।
      पावन नीर पिलाना है।।

संस्कार की समुचित शिक्षा,
बचपन सुदृढ़ बनाती है।
संस्कार की सीख अंत में,
जीवन-विपिन सजाती है।
शिक्षा रूपी बुझे दीप को,
मिलकर आज जलाना है।।
     पावन नीर पिलाना है।।

बचपन रहता है भरा हुआ,
उल्लासों-उत्साहों से।
जीवन-यात्रा चलती रहती,
नित पथरीली राहों से।
बनें सुगम भी दुर्गम राहें,
ऐसा भाव जगाना है।
      पावन नीर पिलाना है।।

मृतिका बरतन घोर तपिश में,
शीतल जल उपजाता है।
शिक्षित मानव सुदृढ़ कुंभ सम,
धोखा कभी न खाता है।
भले लगे ठोकर जीवन में,
किंतु लक्ष्य तक जाना है।।
      पावन नीर पिलाना है।।
        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372

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3 Comments

Varsha_Upadhyay

03-Jan-2023 08:15 PM

बहुत ही सुन्दर

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Haaya meer

01-Jan-2023 09:32 PM

👌👌

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