लेखनी प्रतियोगिता -कुछ नया

नये साल में कुछ नया नया हो तो कुछ बात अच्छी लगे
पुराने ज़ख्मों पे मरहम नया लगे तो कुछ बात अच्छी गे,

किसी को खाना हज़म नहीं तो किसी को रोटी न मिले
ये भेद अगर मिट जाये तो कुछ बात अच्छी गे,

दिन रात चोरी हत्या बलात्कार  की खबरों से रंगे
अखबारों में अब कुछ सुखद छपे तो कुछ बात अच्छी गे,

खुले आसमां के नीचे  कैसे कटती हैं सर्द  भरी रातें
फुटपाथ पे सोए को आसरा मिले तो कुछ बात अच्छी गे,

कहीं बाढ़ कहीं अकाल ये कैसे करिश्में हैं सब
अगर  ये  सब बाज़ी पलटे तो कुछ बात अच्छी गे,

कहर बहुत बरपाया कुदरत ने पिछले सालों में,
ख़ौफ़नाक मंज़र अब कभी न हो तो कुछ बात अच्छी गे,

बिन माँ बाप कैसे गुज़रती होगी ज़िन्दगी उनकी
किसी मासूम पर से साया नहीं उठे तो कुछ बात अच्छी गे,

वही शहर वही गाँव वही सबकुछ  दहशत भरी  दिखे
अमावस की रात में चाँद निकले तो कुछ बात अच्छी गे,

भीड लगी हैं फरिश्ता बन दिखावा करने की यहाँ लोगो की
आदमी पहले इंसान बने तो  तब कुछ बात अच्छी गे,


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7 Comments

Wahhhh wahhhh Bahut hi उम्दा सृजन,, its outstanding

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Rakesh rakesh

04-Jan-2023 02:10 AM

👌👌👌👌🙏🙏

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Abhinav ji

03-Jan-2023 07:46 AM

Very nice👍👍

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