Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय कभी उमंगे उठती मन मे

कभी उमंगे उठती मन में
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कभी उमंगे उठती तन मे।
कभी उदासी छाई मन मे।

मन तो चाहता खुशिया आएं।
ख्वाब खुशी बनकर छा जाएं।
पर दुख  पीछा  नही  छोड़ता,
तन  बंधन  में   बधता  जाए।

खुशिया दूर भगें जीवन में।
कभी उदासी,,,,,,,

मन तो बना रहा चंचल है।
इसमें तो होती हलचल है।
सदा  देखता  ऊंचे सपने,
शुद्ध आत्मा गंगा जल है।

ईश्वर तो रहता जन जन में।
कभी उदासी,,,,,  

दिल दुखकर होता घायल है।
मन  सुख में होता  पागल है।
उठती  मन में  मौज  उमंगे,
मन तो सममुच गंगाजल है।

यह मन खुश रहता है वन में।
कभी उदासी,,,,,, 

सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर

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6 Comments

Wooow बहुत ही उम्दा और खूबसूरत भाव

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Abhilasha deshpande

03-Jan-2023 05:48 AM

बेहतरीन

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