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बेबी...लेट मी किल यू !

कैसे है आप सब....इन बीते हुए पलों के साथ मैने आपके सामने कई रचनाएं पेश की है ,तो आज फिर अपनी एक और रचना के साथ मैं आपसे मुखातिब हूं जिसका  नाम " बेबी ! लेट मी किल यू " हैं।

प्रस्तुत रचना के सभी राइट मेरे पास हैं जिसका अर्थ है इस रचना के किसी भी घटना , डायलॉग या किरदार को कोई भी तोड़ मरोड़ के अपने ढंग से नहीं लिख सकता।इसके सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं और रचना में नैनीताल जैसे नगरों का वर्णन केवल कथ्य को विश्वसनीय बनाने के लिए किया गया हैं। 

•••••©® प्रज्ञा मिश्रा " श्रेया " 

शादी..! ये सिर्फ एक लड़की या लड़के का सपना नहीं दो परिवारों के बीच एक गहरा संबंध बनाने वाला ' त्योहार ' होता हैं।कई जगह इसे किसी त्योहार की तरह मनाया जाता हैं।और इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता हैं दो लोगो पर , जो अजनबी तो होते हैं , मगर एक रात में उन्हे एक दूसरे का बना दीजिए जाता हैं।
सभी अपने शादी के लिए अलग अलग तरह के ख़्वाब सजाते हैं, अपने जीवन साथी को लेकर।एक लड़की जो अपना सब कुछ छोड़ कर ,अपने बसे बसाए परिवार को पीछे छोड़ किसी और का परिवार बसाने आती हैं उसके सपने होते है उसका पति उसे दुनिया की सबसे खुशहाल पत्नी बना कर रखे ,उसे हर खुशियां बिन मांगे दे ,उसकी इच्छाओं की कद्र करें।
मगर क्या हो अगर वहीं पति ठान ले कि वो उसकी जिंदगी नर्क से भी बद्तर बना देगा , एक ऐसा ससुराल जहां जो दिखता हैं वैसा कुछ हो ही ना।और वो दुल्हन जो सिर्फ बर्बादी लेकर आए उस घर में? 

---------- चैप्टर - 1 ----------

" नैनीताल "  हिमालय की कुमाऊं पहाड़ियों की तलहटी में स्थित एक शहर , पर्यटकों की हमेशा से एक पसंदीदा जगह रही हैं।
जिन लोगो को संकीर्णता और संघर्ष से भरे नगरों में रहने में खासा शिकायत होती हैं वो इस शहर में आकर दुबारा जीवंत हो उठते हैं। हिमालय के गोद में खेलता हैं अटखेलिया करता ये शहर बाहरी आबो हवा से दूर ,पहाड़ी भूमि अपना प्राकृतिक श्रृंगार लिए स्थित हैं। 

आज नैनीताल की संध्या धीरे - धीरे उतर रही थी। रूई के रेशों के समान लग रहे आसमान के बादल ढलते सूरज के साथ कही प्रकाशित लग रहे थे तो कही कही अंधकार से ढक चुके थे , कभी सफ़ेद और फिर ज़रा देर में रौशनी पड़ जाती।मानो वो वहां आए पर्यटकों और हमारे साथ खेलना चाहती हो। शायद उसे भी पता था , आज वो दो लोगो के मिलन का साक्षी बनने वाला हैं। 

नैनीताल का एक मशहूर घराना ' माहेश्वरी पैलेस ' आज संसार की सारी रौशनी खुद में समेटे दृढ़ता को लिए स्थिर खडा था मानों उस घर में भी एक गुरुर था वहां के रहने वालों की तरह। 
वो आलीशान घर जिसे एक महल का खिताब दिया जा सकता हैं उसके सामने हर ओर पत्रकारों और मीडिया का जमावड़ा लगा था , नैनीताल और अलग अलग शहरों के मशहूर व्यक्तियों का आना लगा हुआ था और मीडिया उनसे बाते करने की कोशिश कर रही थी ,आखिर उन्हे भी अंदर की सारी जानकारी जानने की उत्सुकता थी।
                      वही अंदर का माहौल बाहर हो रहे शोर शराबे से विपरीत शांत और सौम्य अपने सलीखे को उजागर करता हुआ प्रतीत होता था।किसी अन्य बाहरी लोगों का आना वहा मना था बस कुछ जान पहचान के लोगो की आवाजाही थी।अंदर एक विशाल मंडप और उसमे बैठा " रुद्राक्ष माहेश्वरी " नैनीताल का जाना - माना बिज़नेस मैन , दूल्हे के रूप में कुछ इस कदर जच रहा था कि वहां उपस्थित बाकी लड़कियां उसकी दुल्हन बनना चाहती थी मगर अब ये ख्वाब सिर्फ ख्वाब बन कर रह जायेगा , क्योंकि रुद्राक्ष तो वहां किसी और का दूल्हा बनने के लिए तैयार था। 

" दुल्हन को बुलाया जाए।" पण्डित हवन कुंड में आहुति डालते हुए बोले। 

इतना सुनते ही वहां मौजूद कुछ लड़कियां दुल्हन के कमरे की ओर जाती हैं।और थोड़े ही पल में एक लाल जोड़े में सजी संवरी लड़की घूंघट लिए सीढ़ियों से उतरते हुए आ रही होती हैं उसके आते ही सबकी नज़र उस घूंघट डाली दुल्हन पर ठहर जाती हैं भले ही वो घूंघट में थी मगर उसके खूबसूरती का अंदाजा सब लगा चुके थे।वो लड़की थी रुद्राक्ष की बिज़नेस पार्टनर और उसकी दोस्त " युक्ता गोयंका " जो कि एक कम उम्र की काफ़ी मशहूर व्यक्तियों में जानी जाती हैं। 

युक्ता आकर रुद्राक्ष के बाए ओर मंडप में बैठ जाती हैं , सबको जतलाते हुए कि वो अब से रुद्राक्ष की वामांगी हैं। पण्डित जी मंत्र उच्चारण शुरू करते हैं और जैसे जैसे समय बीत रहा था वैसे वैसे सबकी खुशियां बढ़ रही थी ख़ास कर रुद्राक्ष की दादी " संयुक्ता माहेश्वरी " की। 

" अब दुल्हा - दुल्हन फेरों के लिए खड़े हो जाए।" 

पण्डित जी के कहे अनुसार दोनो खड़े होते हैं और सात वचनों के साथ सात फेरे लेकर सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा एक दूसरे को करते हैं।और फेरो के बाद आता हैं पूरी तरीके से उस दुल्हन को अपनी पत्नी बनाने का वक्त , रुद्राक्ष एक चांदी का सिक्का लिए उसमे सिंदूर लेकर घूंघट के भीतर ही युक्ता को सिंदूर भरने जाता हैं कि एक आवाज़ के साथ पूरा हॉल गूंज जाता हैं। सीढ़ियों से उतरती दुल्हन के जोड़े में युक्ता भागी आ रही होती हैं, जिसके बाल इधर उधर बिखरे थे और उनके आंखो में दुःख और गुस्सा साफ़ झलक रहा था।सभी युक्ता को मण्डप में न देख चौंक चुके होते हैं, आखिर वही तो दुल्हन थी जब युक्ता वहां नहीं तो रुद्राक्ष किससे शादी कर रहा..या कर चुका..! 

" रुद्राक्ष सिंदूर मत भरना।" युक्ता भागते हुए रुद्राक्ष के पास आती है।मगर अब देर हो चुकी थी सिंदूर भरा जा चुका था।रुद्राक्ष को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जब युक्ता उसके सामने है तो जो उसके बगल में उसकी वामांगी बन बैठी है वो कौन है? वहां पर उपस्थित मेहमान भी ख़ुद में बाते करने लगते हैं कि आखिर घूंघट में कौन है जो इतने देर से युक्ता बन मंडप में बैठी हैं और अब रुद्राक्ष की धर्मपत्नी बन चुकी है।रुद्राक्ष अपना सेहरा गुस्से में हटाते हुए खड़ा हो जाता है,और उस घूंघट वाली दुल्हन का घूंघट उठाता है उसके सामने कोई और थी जिसे वो बिल्कुल नहीं जानता था।वो लड़की अपनी बड़ी बड़ी सुरमे से सींचे हुए आंखो से रुद्राक्ष को देख रही थी उसके वो सुर्ख लाल मुलायम होठ जो डर की वजह से कंपन कर रहे थे।उसका वो छोटा सा सांवला भोला चेहरा इस वक्त सहम चुका था।और उसे देख रुद्राक्ष के साथ वहां उपस्थित सभी के मन में एक ही सवाल आता हैं आखिर कौन है ये दुल्हन....? 

कहानी आगे भी जारी है। 
पढ़ते रहिए , और समीक्षा जरूर दीजिए अगर कहानी अच्छी और रोमांचक लगी तो। 
इस कहानी के लिए एक बात कहना चाहूंगी कि नारियल को देख अंदर के पानी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता ,जब तक आप उसे उठाते है हिलाकर और खोलकर नही देखते। तो ये कहानी भी कई राज के परतों से घिरी है जिसके परत हर भाग के साथ खुलेंगे।

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14 Comments

Arti khamborkar

19-Dec-2024 04:02 PM

v nice

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kashish

13-Jul-2023 03:04 PM

beautiful story

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HARSHADA GOSAVI

03-Jul-2023 03:14 PM

v nice

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