लेखनी प्रतियोगिता -05-Jan-2023... भूली बिसरी यादें....
खत़.......ऐसा प्यारा अहसास जिससे आज की युवा पीढ़ी अनजान हैं..। मोबाइल में मैसेज करना ओर अगले ही क्षण सामने से जवाब मिल जाना...। जो मजा खत़ो का इंतजार करने में था वो आजकल सोशल मीडिया में कहां....। आज अगर मैसेज का जवाब पांच मिनट की देरी से दिया तो ब्रेकअप तक हो जाते हैं...। कैरेक्टर पर सवाल उठा लिए जाते हैं.... आनलाइन हो फिर भी जवाब नहीं.... किससे लगे हुवे हो.... 😄😄😄
एक वो जमाना था.... जब खत़ लिखने के बाद एक लंबा इंतजार रहता था... गली में अगर कोई साइकिल वाला घंटी बजाएं तो भागकर बाहर जातें थे.... ये देखने की कहीं डाकिया तो नहीं आया...।
कुछ किस्से उस समय के......
दरअसल उस समय में लैंडलाइन फोन होतें थे... लेकिन वो भी किसी खास (पैसे वाले) लोगों के ही घर...। हमारे पड़ौस में एक राजपूत अंकल रहते थे उनके घर था... लेकिन उनके रौबदार रुतबे के कारण हम किसी भी रिश्तेदार को उनका नंबर नहीं देते थे..। हम ख़त लिखकर ही खुश थे...।
मेरी मम्मी सिंधी मीडियम में पढ़ी हुई थीं... वो सभी रिश्तेदारों को सिंधी भाषा में खत लिखती थीं....। वो हमें कभी खत़ लिखने के लिए नहीं बोलतीं थीं... लेकिन अंतर्देशीय पत्र और लिफाफे लाने के लिए और खत़ लिखने के बाद उनपर डाक टिकट लगाकर पोस्ट करने के लिए हरबार बोलतीं थीं...। ये तो हुई रिश्तेदारों की बात...।
मेरी मम्मी मेरे पापा से भी खतों के जरिये ही बात करतीं थीं...। दर असल मेरे पापा बस ड्राइवर थे...। हमारी खुद की बसें चलतीं थीं.. दूर दराज के गांवों में...। पापा बहुत कम घर आतें थे...ढाई- तीन महीने में एक बार...। लेकिन पापा के लिए घर से कपड़े हर दूसरे दिन भेजें जातें थे...। एक जोड़ी कपड़ों की धूली हुई जोड़ी जाती ओर मैले कपड़ों की जोड़ी आती...। ऐसे में मम्मी शर्ट की जेब में हर दूसरे दिन एक छोटा सा सिंधी में लिखा हुआ ख़त डालती थीं और जवाब में पापा मैले कपड़ों में ख़त भेजते थे...।
मेरी मम्मी ने बताया था की मेरे पैदा होने की खबर भी पापा को खत के जरीये दी गई थीं.... और तीन महीने बाद जब पापा घर आए तब उन्होने मुझे पहली बार गोद में उठाया था....।
चूंकि हम सभी भाई बहनों में से किसी को भी सिंधी पढ़ने नहीं आतीं थीं इसलिए हमें यह तो कभी पता नहीं चला की मम्मी अपने खतों में रिश्तेदारों को या पापा को क्या लिखते थें ...।
लेकिन ये ख़तो का जो अहसास हैं वो मैने भी बखूबी जिया हैं...।
मैं राजस्थान के जयपुर शहर में ओर मेरी सगाई हुई थीं गुजरात के अहमदाबाद शहर में...। जब मेरी सगाई हुई उस समय में ग्रिटिंग कार्ड का बहुत ज्यादा चलन था .....। चूंकि उस वक्त भी हमारे घर फोन नहीं था.... लेकिन एसटीडी बूथ की सुविधा आ चुकी थीं...।
लेकिन मैं उनका इस्तेमाल ना के बराबर करतीं थीं...। क्योंकि इतने लंबे रुट की वजह से फोन का मीटर दिल की धड़कनों से भी तेज़ गति से चलता था...। नंबर लगाकर रिसीवर उठाते ही 1.56...रुपये स्क्रीन पर दिख जातें थे... हर बढ़ते लब्ज़ पर मीटर कब 2,5,10,20 रुपयों तक पहुँच जाता था पता ही नहीं चलता था...। उस वक्त हमारी आर्थिक स्थिति भी कुछ ठीक नहीं थी... इसलिए हाय हैलो करने में ही सौ रुपये उड़ा देना मुझे वाजिब नहीं लगता था...। इसलिए मैं ग्रिटिंग कार्ड का ज्यादा उपयोग करतीं थीं...। पतिदेव के जन्मदिन पर, त्यौहारों पर या परिवार के दूसरे सदस्यों के जन्मदिवस पर कार्ड भेजती थीं... साथ में एक छोटा सा प्यार से भरा हुआ खत भी.... 😄😄😄।
लेकिन आप सभी को यह जानकर हैरानी होगी की मुझे मेरे ससुराल में से किसी का भी... यहाँ तक की पतिदेव का भी कभी कोई ख़त नहीं मिला....। क्योंकि उनके घर लैंडलाइन फोन था...। उनको जब कुछ कहना होता तो मेरी एक मासी जी के घर फोन करते थे... (मेरी सगाई से कुछ वक्त पहले उनके घर लैंडलाइन फोन लग गया था लेकिन सिर्फ इनकमिंग)ओर मेरी मासी जी का घर मेरे घर से पैदल चलने पर दस मिनट की दूरी पर था...।
ये भी बहुत रोचक था... फोन आता... पतिदेव जी मैसेज देकर फोन रख देते... फिर मासी का बेटा साइकिल पर मुझे बुलाने आता... फिर मैं पैदल उनके घर जाती.. फिर पन्द्रह बीस मिनट बाद ससुराल से फोन आता...। दो चार मिनट मुश्किल से बात होतीं होगी... कभी कभी तो आधा आधा घंटा इंतजार करने पर भी फोन नहीं आता... घर लौटती और फिर से भाई बुलाने आता.... 😀😀😀
लेकिन कुछ भी कहो.... वो आना जाना.... वो कार्ड.... वो ख़त....वो एसटीडी का बढ़ता मीटर.....उसके मज़े ही अलग थे..वो बात आज के व्हाट्सअप मैसेज में नहीं...... ☺☺☺☺☺
प्रिशा
04-Feb-2023 09:32 PM
Very nice
Reply
Sushi saxena
08-Jan-2023 08:07 PM
Nice 👍🏼
Reply
Rajeev kumar jha
07-Jan-2023 07:19 PM
शानदार
Reply