दफ्तर में यूँ ही खाली बैठे - बैठे,
घुस गया दिमाग में केमिकल लोचा।
कुछ काम न करती पत्नी घर में,
बस सोती रहती पति ने सोचा।
घर जाकर पत्नी को यूँ घूरा,
मानों कच्चा ही खा जायेगा।
चाय के साथ नमकीन नहीं तो,
इसको ही आज चबा जायेगा।
जब चाय गई उर के अंदर,
केमिकल असर कुछ कम हुआ।
सोचा पहले करता हूँ बात,
मस्तिष्क पूर्व से नम्र हुआ।।
तुम क्या करती रहती दिनभर।
मैं तो दफ्तर को जाता हूँ,
दस से छह तक खटता रहता।
थके बुझे घर आता हूँ।
तुम रोटी- दाल बनाकर के,
अहसान नहीं कुछ करती हो।
सारा दिन खटती हूँ घर में,
हरदम ये कहती रहती हो।।
पत्नी बेचारी शान्त रही,
देख देवता को अशांत।
पर अंतरात्मा कराह उठी,
गौर वर्ण दुख से हुआ मलान्त।
एक दिन पति दफ्तर से आये,
घर था पूरा कूड़ेदान बना।
पत्नी को आवाज़ लगाया,
पर उसने कुछ नहीं सुना।
हार गया आवाज लगाके,
तब खुद उसके पास गया।
आँख तरेर कर बोल रहा,
घर का ये क्या हाल हुआ।
सारा घर क्यूँ है तितर बितर,
बच्चों की चीजें फैली हैं।
बनियान भी मेरी पड़ी वहीं,
बोला था धो देना गंदी हैं।
दाल-रोटी उबाल कर रखा,
दिनभर चैन से खूब सोई।
जब मैं करती कोई काम नहीं,
तो व्यर्थ अपेक्षा रखे न कोई।
पत्नी के इस एक वाक्य से,
पति की जिह्वा खामोश हुई।
बोला रानी कर माफ़ मुझे,
घर की तुमसे ही शान रही।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
Abhilasha deshpande
10-Jan-2023 07:36 AM
बेहद उम्दा
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
10-Jan-2023 05:44 AM
यथार्थ चित्रण,,, लाजवाब लाजवाब
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Reena yadav
10-Jan-2023 03:19 AM
Nice 👌
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