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कहूं या नहीं

जब कुछ नहीं था
 तब वह 
"था "
कौन था।
"अब"
 जो आज है
वह
 "अब"
क्या है?
कितना पुराना है
  मनुष्य।
कितना पुराना है 
शुन्य।
मनुष्य क्या है?
चेतन अस्तित्व।
शुन्य क्या है?
अचेतन अस्तित्व।
एक प्रश्न था।
एक प्रश्न है।
क्या चेतन, अचेतन में समा सकता है?
क्या अचेतन, चेतन में समा सकता है?
सागर का जन्म कितना पुराना है?
जितना सागर का जल पुराना है?
फिर बरसता पानी नया केसा?
सागर का पानी पुराना क्यों?
वह सबकुछ जानता कौन था?
यह सब कुछ जानता कौन है?
सागर के जल को पुराना
 बताने वाला नया कैसा।
यह कौन "में" है।
जो इतना जानता है।
जो इस सृष्टि को अनंत मानता है।
अनंत का अंत कैसे हो सकता है।
अनंत का अंत कौन कर सकता है।
जो अनंत है वह अनंत ही होगा।
 फिर अनंत को जानने वाले का अंत केसा?
यह शुन्य अस्तित्व की हत्या तो कर सकता है।
पर तत्व का परिवर्तन नहीं रोक सकता है।
तत्व अस्तित्व की तलाश करता है।
अस्तित्व तत्व की तलाश करता है।
जो तत्व और अस्तित्व को मिलने नहीं देते हैं।
 उनका जन्म नहीं होता है।
पर ऐसा होता नहीं होगा।
अगर ऐसा हो गया होता।
तो जीवन खत्म हो गया होता।
जो तत्व और अस्तित्व के बीच दृढ़ता पूर्वक पूर्ण होश में या चीरनिंद्रा में जागे हुए या सोए हुए हैं।
उन सभी अधिक जानने वालों को संसार से अवश्य ही मुक्ति भी मिल गई होगी।
अब वह जीस शुन्य में डूबना चाहते हैं उसके लिए उन्हें उनके अस्तित्व की हत्या ही करनी पड़ती होगी।
पर जिसका जन्म ही नहीं होता, उसका अंत भी नहीं होता होगा।
फिर भी कोशिश की जा रही है। शायद इसी कारण श्री कृष्ण ने संकल्प को गलत कहा है।

#chetanshrikrishna

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6 Comments

Sachin dev

11-Jan-2023 06:05 PM

Lajavab

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बहुत ही सुंदर और दार्शनिक भाव

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