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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 विश्व हिंदी दिवस ( हिंदी हमारी पहचान )



शीर्षक = हिंदी हमारी पहचान



एक्सक्यूज़ मी,, क,,, क,,, कैन यू हेल्प मी,,,,, कैन यू हेल्प मी,, टू,, टेल मी,, वेयर,, लोकेशन,,, थिस,, इस,, टूटी फूटी अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हुए कापती जुबान में एक आदमी ने दुसरे आदमी से पूछा


सामने खड़े उस आदमी ने पलट कर दुसरे आदमी की तरफ देखा, जिसे देख मालूम पड़ रहा था की वो लंदन में नया आया है,


उसने उसकी तरफ देखा, और अंग्रेजी में उससे पूछा " वेयर आर यू फ्रॉम "

"मी,, मी,, फ्रॉम इंडिया. आई एम न्यू हियर, लिटिल लिटिल इंग्लिश " उस शख्स ने कहा हकलाते हुए

"ओह इंडिया, केसा है भाई? परेशान ना हो हिंदी में बात कर सकते हो तुम मुझसे, मैं भी इंडिया से हूँ " दुसरे आदमी ने कहा


ओह शुक्र है ऊपर वाले का, कि कोई तो मिला इस अनजान शहर में अपनी भाषा वाला , मैं तो पागल हो गया, इतनी देर से ये रस्ता पूछते पूछते,



बस कुछ इस तरह ही होता है, ज़ब कोई अपने देश से दूर किसी दुसरे देश में जाता है और वहाँ जाकर ही उसे पता चलता है, कि अपनी भाषा और अपने लोगो का ना होने पर किस तरह मुसीबतो का सामना करना पड़ता है

मीलों दूर तक भी ज़ब कोई आपकी भाषा को समझने वाला ना हो तब आपको अपनी बात समझाना कितनी मुश्किल हो जाती है इसका अंदाजा आप को उस समय ही होता है, और ज़ब अचानक आपको आपकी भाषा बोलने वाला समझने वाला मिल जाए तो आपको इस तरह प्रतीत होगा कि मानो सेहरा में पानी बरस गया हो, आप उसके साथ खुल कर बात कर सकोगे भले ही वो आपका आपके देश में दुश्मन ही क्यू ना रहा हो लेकिन उस समय वो आपका एक दोस्त होगा जो आपकी बात को समझ सकेगा 


कहने का तात्पर्य सिर्फ और सिर्फ इतना है कि अपनी मातृ भाषा की हमेशा इज़्ज़त करना चाहिए, किसी अन्य भाषा को सीखने के चककर में अपनी मातृ भाषा को विलुप्त नही करना चाहिए


आज के इस अवसर पर ज़ब हमारी भाषा यानी की हिंदी को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलने पर 10 जनवरी को देश भर में विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है तो हमारा भी यही संकल्प रहना चाहिए की हमें ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा का प्रचार करना चाहिए, भले ही हिंदुस्तान विविधता वाला देश है और इसी विविधता में एकता भी देखने को मिलती है, जिस जिस तरह कोस कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है उसी तरह हिंदुस्तान में भी कोस कोस पर एक नयी भाषा देखने और सुनने को मिलती है, जिसे वहाँ की स्थानीय भाषा के नाम से भी जाना जा सकता है 

भले ही आज हम सब विश्व हिंदी दिवस मना रहे है और 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाते है, लेकिन कही ना कही आज हम सब लोग हिंदी को अपनी आम बोलचाल में बोलने से घबराते है


गांव, देहात में तो अभी भी ज्यादातर लोग हिंदी में ही बात चीत करना पसंद करते है और तो और अनपढ़ लोग भी हिंदी भाषा का ही इस्तेमाल करते है, लेकिन रही बात पढ़े लिखें और शहरों में रहने वाले लोगो की उनका यही संकल्प रहता है की वो ज्यादा से ज्यादा अंग्रेज़ों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना सके, माना अच्छी बात है अंग्रेजी या फिर किसी अन्य भाषा को सीखना, क्यूंकि ना जाने कब कौन सा ज्ञान कहा काम आ जाए कोई नही जानता


लेकिन इस तरह अपनी पहचान खो कर किसी दुसरे की पहचान को अपनी पहचान बनाने की हर दम कोशिश करते रहना तो गलत बात है ना,


मैं बस अपनी राय दे रहा हूँ, और एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि क्या हिंदुस्तान में विद्या को दो भागो में बाटना उचित है क्या, यानी कि हिंदी मीडियम स्कूल और अंग्रेजी मीडियम स्कूल


हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चें गँवार और इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चें दिमाग़ दार, इंटेलिजेंट, ये किस तरह कि मानसिकता है हम लोगो की

अपनी भाषा को पढ़ना, उसी भाषा में सीखना अपने ही देश में अपने ही लोगो के बीच वो शख्स गँवार समझा जाता है, छोटे छोटे बच्चें अपने आप को ना जाने किस तरह से देखते है ज़ब उनके सामने इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों के साथ तोला या तुलना की जाती है, ये किस तरह का भेदभाव है विद्या को लेकर, आखिर किसने विद्या को दो भागो में बाँट दिया, जबकी सब को एक ही शिक्षा मिलना चाहिए थी और वो थी हिंदी भाषा में भले ही अंग्रेजी का भी स्थान होता लेकिन इतना नही की उसे बोलने वाले पर लोग तालियां बजाये और हिंदी को बोलने वाले पर लोग मुँह छिपा कर हसे


क्यू आखिर हमें अपने ही देश में अपनी दिनचर्या चलाने के लिए विदेशी भाषा का सहारा लेना पड़ रहा है, क्यू दिन बा दिन माता पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा देने पर ज़ोर दे रहे है, क्यू अपने बच्चों को हिंदी में बात करता देख उनका गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ जाता है, क्यू इस मोबाइल के युग में ज़ब लोग चैटिंग से बात करते है, जहाँ अन्य मुल्को में रहने वाले लोग अपने मोबाइल में अपनी मातृ भाषा से लगाव रखने के लिए अपने मोबाइल में वही कीपैड रखते है और उसी में बात चीत करना पसंद करते है, लेकिन क्यू हमारे देश में लोग आपसी बात चीत, चैटिंग में भी हिंदी में बात करना पसंद नही करते है, कि कही सामने वाला उन्हें गँवार ना समझ ले क्या अपनी भाषा बोलना गँवार पन है, हमारी पहचान हमारी हिंदी दिन बा दिन उसी के लोगो द्वारा कही खो सी रही है और हम लोग सिवाय अफ़सोस के कुछ नही कर रहे है


आइये जानते है, विश्व हिंदी दिवस के बारे में और ये भी की आखिर किस तरह हमारी भाषा विदेशियों द्वारा अपनायी जा रही है, जहाँ हमें तो अपनी भाषा अपने ही देश में बोलने में शर्म आती है वही विदेशो में किस तरह लोग हिंदी बोलते है, और तो और फिज़ी देश में तो हिंदी ही बोली जाती है

हम अपने अनुभव से कह रहे है, क्यूंकि हम भी भारत से बाहर रहते है और किस तरह यहाँ पर रहने वाले लोग हम से भी अच्छी हिंदी बोलते है भले ही लिख नही पाते है लेकिन बोल और समझ बखूबी लेते है, उनका स्वयं का कहना है कि हिंदी बोलने और समझने में अन्य भाषा से सरल है,


विश्व हिंदी दिवस या विश्व हिंदी दिवस, 10 जनवरी को हिंदी की भाषाई विरासत का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन कार्यालयों और कई सरकारी संस्थानों में भी मनाया जाता है।

क्‍या है विश्‍व हिंदी दिवस

विश्व हिंदी दिवस या विश्व हिंदी दिवस, प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। 1975 में नागपुर में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया गया था। 10 जनवरी को आधिकारिक तौर पर 2006 में विश्व हिंदी दिवस के रूप में नामित किया गया था और तब से हिंदी की "समृद्ध भाषाई विरासत" को बढ़ावा देने के लिए इसे मनाया जाने लगा है। विश्व हिंदी दिवस को अक्सर राष्ट्रीय हिंदी दिवस या हिंदी दिवस के लिए गलत माना जाता है, जिसे 14 सितंबर को मनाया जाता है। हिंदी दिवस 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में पहली बार हिंदी बोली जाने की याद में एक अलग उत्सव है।

425 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा उनकी पहली भाषा के रूप में बोली जाने वाली, हिंदी आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाओं में से एक है, जो इंडो-ईरानी भाषाओं की एक शाखा का गठन करती है। संस्कृत की वंशज यह भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक है और सात और देशों में आबादी के एक हिस्से द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है। इतिहासकार हिंदी की उत्पत्ति पर काफी हद तक सहमत हैं, इसका पहला प्रयोग अभी भी बहस का विषय है। हालाँकि, कुछ खातों के अनुसार, भाषा ने 13 वीं शताब्दी तक दिल्ली और उसके आसपास लोकप्रियता हासिल की। उस समय "हिंदवी" के रूप में जाना जाता था, यह अनिवार्य रूप से अरबी, फारसी तुर्की और यहां तक कि अंग्रेजी भाषा से भी प्रभावित था।

अंग्रेजी में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले कुछ शब्द वास्तव में हिंदी से लिए गए हैं। अंग्रेजी में उधार शब्द के रूप में जंगल, ठग, बंगला, जगरनॉट और चटनी जैसे शब्दों को अपनाया गया।


यह भारतीयों के लिए गर्व का क्षण था जब भारत की संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया। संविधान ने उसी को मंजूरी दे दी और देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी आधिकारिक भाषा बन गई।

14 सितंबर, जिस दिन भारत की संविधान सभा ने हिंदी को अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया, प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। कई स्कूल, कॉलेज और कार्यालय इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। इन स्थानों को उत्सव के लिए सजाया जाता है और लोग भारतीय जातीय परिधान पहनकर आते हैं। बहुत से लोग हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के महत्व के बारे में बात करने के लिए आगे आते हैं। स्कूल हिंदी वाद-विवाद, कविता और कहानी कहने की प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी करते हैं।

यह हिंदी भाषा के महत्व पर जोर देने का दिन है, जो उस देश में अपना महत्व खो रही है जहां अंग्रेजी बोलने वाली आबादी को स्मार्ट माना जाता है। यह देखकर दुख होता है कि कैसे नौकरी के साक्षात्कार के दौरान अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को दूसरों पर तरजीह दी जाती है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि नियोक्ता हाथ में लिए गए कार्य के बारे में उनके ज्ञान के लिए किसी व्यक्ति के अंग्रेजी भाषा कौशल की गलती करते हैं। इस पक्षपातपूर्ण रवैये से उबरने का समय आ गया है। हिंदी दिवस हमारी राष्ट्रीय भाषा के साथ-साथ हमारी संस्कृति के महत्व पर जोर देने के लिए एक महान कदम है।


इस लेख के माध्यम से बस इतना ही कहना चाहूंगा कि हिंदी हमारी पहचान है, और किसी भी मनुष्य के लिए अपनी पहचान खोकर जी पाना मुश्किल ही नही ना मुमकिन है, किसी भी अन्य भाषा को सीखना उसका इस्तेमाल करना कोई गलत बात नही है, लेकिन अपनी भाषा अपनी पहचान खोना उसे सीखने के चककर में ये सबसे बडी मूर्खता है,


मुझे गर्व है, कि मैं सर ज़मीन - ए - हिंदुस्तान में जन्मा और मैं हिंदी बोलता हूँ और लिखता भी हूँ,कोई चाहे मेरे बारे में कुछ भी सोचे कुछ भी समझें, मुझे अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन है क्यूंकि इंसान को जो कुछ भी मिले सीखते रहना चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नही की किसी चीज को अपने ऊपर हावी कर लो उस के चककर में अपनी पहचान ही भूल जाओ

एक दिवसीय प्रतियोगिता हेतु 



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3 Comments

बहुत ही बेहतरीन और उम्दा लेख

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अदिति झा

12-Jan-2023 04:42 PM

Nice 👍🏼

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Rajeev kumar jha

10-Jan-2023 07:26 PM

बहुत खूब

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