हिंदी कहानियां - भाग 24
| ताऊ की चालाकी |
| ताऊ की चालाकी | एक समय की बात है, जब ताऊ जवान हुआ करता था,ताऊ घर पर सोया था, ओर उधर नहर वाले खेत के पास से तीन अजनबी लोग गुजर रहे थे, दोपहर का समय था, ओर आसपास भी कोई नही था,अब तीनो ने सोचा चलो खेत मे चने लगे हे, ओर आसपास भी कॊई नही, ओर हमे भूख भी लगी हे, तो चने खाये जाये, यह तीनो लोग मे से एक ब्राह्मण था, एक क्षत्रिय था, ओर एक नाई, बहुत सोच समझ के बाद तीनो ने चने उखाडे ओर वही बेठ के खाने लगे. ताऊ घर मे बेठा मक्खी मार रहा था, तभी ताई ने कहा जा जरा खेतो मे देख आ कोई जानवार ना घुस गया हो, बात ताऊ के दिमाग मे आगई, ताऊ लठ्ठ ले कर खेतो की तरफ़ चल पडा, अब ताऊ ने दुर से देखा कि तीन लोग चने के पोधे उखाड उखाड कर फ़सल खराब कर रहे है, खाते कम ओर नुक्सान ज्यादा कर रहे हे, गुस्सा तो ताऊ को बहुत आया, फ़िर ताऊ ने चारो ओर देखा, आसपास कोई नजर भी नही आया, अब ताऊ ने सोचा कि सीधा जाकर अगर मेने लडाई की तो यह तीन है, ओर मै अकेला कही यह भारी ना पड जाये, तो फ़िर ताऊ ने अपनी बुद्धी का प्रयोग किया, केसे?? ताऊ गया उन के पास ओर पहले आदमी से बोला भाई साहब आप कोन, जबाब मे उस ने कहा मे एक ब्राह्मण हुं, तो ताऊ बडा खुश हुआ, बोला महा राज आप ने तो मेरा खेत ही पबित्र कर दिया अरे मुझे हुकम देते मे घर पर छोड आता, खाईये जितना चाहे,ओर हां अगर आप को घर के लिये भी चाहिये तो मे अपनी बेलगाडी से आप के घर पर चार पांच गठरी चनो की छोड आऊगां फ़िर ताऊ दुसरे आदमी के पास गय, ओर बोला भाई सहाब आप कोन? तो उसने कहा मै क्षत्रिय हुं, इतना सुनते ही ताऊ बोला अरे कुवर जी आप तो हमारे अन्नदाता है, मेरे कितने अच्छॆ भाग्या है मेरे कुवरं साहब पाधारे आप भी खाईये जितना चाहे, अगर घर के लिये भी चाहिये तो हुकम मेरे महाराज कुवर साहव, अब आप खाईयेमै जरा इन से बात कर लू, फ़िर ताऊ तीसरे के पास गये, ओर बोले भाई साहब आप कोन तो तीसरा आदमी बोला जी मै नाई. अब ताऊ बोला नाइ तेरी हिम्मत केसे हुयी मेरे खेत मे घुसने की बोल ससुरे, इन ब्राह्मण ने चने उखाडे यह हमरे पुजनिया है, हमारे व्याह शादी पर , किसी के मरने पर, दुख सुख मे हमे कथा सुनाते हे काम आते है, ओर यह कुवर साहब तो हमारी सरकार है, हमारे राजा, यह भि दुख सुख मे हमारे काम आते है, पर कमीने तु किस काम का ओर ताऊ नेउस हज्जम को जर्मन लठ्ठ से खुब बजाया,ब्राह्मण ओर क्षत्रिय दोनो नाई को पिटाता देख कर खुश हो रहे थे, जब ताऊ ने नाई को अच्छी तरह से बजा दिया तो उसे टागं से पकड कर खेत से बाहर फ़ेंक दिया,फ़िर ताऊ आया उस क्षत्रिय की तरफ़, ओर बोले क्यो कुवरं जी क्या खेत मेबीज तुम्हारे बाप ने दिया था, ओर खाद आप ने दादा ने दी थी, बोलो क्षत्रिय बोला नही तो , तौ बोला ब्राह्मण तो हमारे पुज्निय ठहरे , लेकिन आप ने फ़िर क्यु उखाडे हमारे चने, हे बोलो ओर फ़िर ताऊ ने अपना लठ्ठ उस क्षत्रिय पर खुब मांजा,क्षत्रिय को पिटाता देख कर नाई ओर ब्रह्माण बहुत खुश हुये, नाई मन ही मन कह रहा था साले जब मेरी पिटाई हुयी तो बहुत खुश था अब तु भी पिट, ओर ताऊ ने उसे भी मार मार के लाल कर दिया, उधर ब्राह्नाण कह रहा था कमीने को ओर मार अपने आप को कुवरं साहब मान रहा था, तो ताऊ ने उसे भी इतना मारा कि बेचारे से खडा भी ना हो पाया जा रहा था, ओर उसे भी टांग से पकड कर नाई की बगल मे फ़ेंक दिया. उधर क्षत्रिय सोच रहा था अब गाव मे जा कर यह ब्राह्माण हम दोनो की खिली उडायेगा, देखो नाई ओर क्षत्रिय खुब पिटे, ओर हमे देख देख कर खुश भी हो रहा था, हे भगवान इस की भि पिटाई करवा,ओर अब ताऊ चले ब्राह्माण की ओर , ओर बोले पूजनीय जी अब आप की भी पुजा हो जाये तो केसा रहेगा,क्यो मेरे पुजनिया क्या यह खेत युही तेयार हो जाता है क्या, अरे इस मे बीज डालना पडता है, खाद डालनी पडती है, फ़िर मेहनत ओर फ़िर इस की हिफ़ाजत करनी पडती है, जब आप पुजा वगेरा करते हो तो कोई एक पेसा भी कम लेते हो?? बोलो... ओर ताऊ होगया चालू उस ब्राह्माण कि पुजा करने केलिये., ओर फ़िर ताऊ ने खुब पुजा की उस ब्राहमण की.....