कर्म के दीप
कर्म
*कर्म के दीप*
कर्म के दीप यदि हम जलाते रहें,
कष्ट के सब तिमिर लुप्त हो जाएँगे।
होगा दर्शन त्वरित एक सुप्रभात का-
बंद पंकज भ्रमर मुक्त हो जाएँगे।।
कर्म के दीप-------।।
करें हम निरीक्षण तनिक विश्व का,
धरती-अंबर व सरिता-सप्त सिंधु का।
सबके आधार में तम ही प्रच्छन्न है,
ज्योति-दाता परंतु सूर्य प्रसन्न है।
धैर्य से पथ पे यदि हम निरंतर चलें-
आपदाओं के क्षण गुप्त हो जाएँगे।।
कर्म के दीप----- --।।
रात्रि चाहे कुहासों से आच्छन्न हो,
चाँदनी का गगन-क्षेत्र आसन न हो।
धुंध का ही चतुर्दिक प्रहर क्यों न हो?
कंटकाकीर्ण आपद-डगर क्यों न हो?
चेत मश्तिष्क मानव का चैतन्य नहीं-
स्वप्न-सरगम के सुर सुप्त हो जाएँगे।।
कर्म के दीप-----------।।
स्वार्थ-लोलुप न हों,कर्म-साधक बनें,
कर्म ही ईष्ट है,कर्मोपासक बनें।
सृष्टि का धर्म बस कर्म ही कर्म है,
कर्म ही धर्म है,कर्म ही धर्म है।
कर्म की यष्टि ले यदि करें पथ-भ्रमण-
लक्ष्य जीवन के सब तृप्त हो जाएँगे।।
कर्म के दीप----------।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372