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हिंदी कहानियां - भाग 194

थैंक गॉड : थाईलैंड वाली गुफा इंडिया में नहीं थी


थैंक गॉड : थाईलैंड वाली गुफा इंडिया में नहीं थी कई बार आपदाएं भी विचित्र और हास्यास्पद स्थितियां पैदा कर देती हैं। खासकर भारत में। अभी हाल में थाईलैंड की एक गुफा में कुछ बच्चे फंस गए थे। वहां की सरकार ने त्वरित कार्रवाई कर उन्हें बचा भी लिया, लेकिन अगर यही घटना भारत में हुई होती, तो अलग ही तमाशा बन सकता था।  थैंक गॉड थाईलैंड की गुफा से बच्चे निकाल लिए गए, गनीमत ये रही कि यह गुफा इंडिया में नहीं थी, इंडिया में होती तो बड़े जोरदार सीन होते... -अव्वल तो इंडिया में ऐसी कोई गुफा आज तक बच ही नहीं पाती, पूरी संभावना है कि कोई राजनेता या माफिया उस पर कब्जा करके उसे शानदार होटल/मोटल या एडवेंचर गेम सेंटर के रूप में विकसित करके  खूब माल पीटता, फिर भी यदि गुफा बच ही जाती, तो वह प्रेमी युगलों और पुलिसवालों की सबसे फेवरिट जगह होती, गुफा का एक-एक अंधेरा कोना दिनभर प्रेमी युगलों की हरकतों से गुलजार होता रहता, गुफा की दीवारों का चप्पा-चप्पा ‘राकेश लव सुनिता’ टाइप कोट्स से भरा होता और असली/नकली पुलिस छापे मार-मार के वसूली करती रहती। गुफा में बच्चे यदि फंस भी जाते,तो कई दिन तक मामला जस का तस रहता, पुलिस सीमा विवाद में उलझी रहती—‘गुफा का मुहाना मेरे एरिया में है, तो क्या हुआ लास्ट तो तुम्हारे एरिये में है न,’— टाइप बातें होतीं, बाद में कोर्ट के  हस्तक्षेप से मुकदमा दर्ज होता। बच्चों के फंसने की खबर आम होते ही सैंकड़ों चैनलों के हजारों रिपोर्टर, ढेर सारी तमाशाई व ‘सेल्फी आतुर’ पब्लिक मौका-ए-वारदात पर टूट पड़ती, ‘गुफा के अंदर का भीतरी नजारा सिर्फ-और- सिर्फ हमारे चैनल पर’ टाइप कार्यक्रम के चक्कर में कई रिपोर्टर और कैमरामैन गोताखोरों को धकिया-वकिया के खुद ही गुफा के अंदर घुस जाते और डरे-सहमे बच्चों के मुंह में माइक घुसा के पूछते...“इस वक्त आपको कैसा लग रहा है?” उधर स्टूडियो में देश के एक-से-एक ‘गुफा विशेषज्ञ’ -जैसी शक्लें बनाए घटना की मीमांसा करते, पुलिस त्वरित कार्यवाही के तहत हर पांच मिनट पर लाठियां भांज-भांज के पब्लिक को भगाती रहती,नतीजा यह  होता की बारह बच्चों को निकाले जाने के बाद भी मामला खत्म न होता,डेढ़-दो सौ रिपोर्टरों-कैमरामैनों को भी निकालना पड़ता। गुफा यदि इंडिया में होती, तो वह भी ‘जीएसटी’ के दायरे में होती, गुफा में घुसते समय ‘एंट्री लोड’ और गुफा से निकलते समय ‘एक्जिट लोड’ लगता,  सदन में तत्काल एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाती जो बेहद हंगामेदार होती, विपक्ष इस घटना के पीछे सत्ता पक्ष की अक्षम्य लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हुए प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग करता, तो सत्ता पक्ष इस घटना का जिम्मेदार सीधे-सीधे विपक्ष को ठहराता, जिसने पिछले सत्तर साल में गुफा के विकास के लिए कोई काम नहीं किया। फिर अफसरों-राजनेताओं की मीटिंग्स का दौर शुरू होता, आखिरकार तय होता कि सरकार सबसे पहले दलित समुदाय के बच्चों को बचाएगी, तत्पश्चात पिछड़ों व अल्पसंख्यकों को, सामान्य श्रेणी के बच्चों को सरकार नहीं बचाएगी, जिसके लिए टेंडर जारी होता, जिसमें ये आरोप लगता कि सारे ठेके दो बड़े उद्योगपतियों की कंपनियों को दे दिए गए हैं। गुफा यदि भारत में होती, तो ‘गोताखोर’ पहले गुफा में घुसते समय की सेल्फी लेकर उसे सोशल साइट पर पोस्ट करते। सबसे सही तो यह होता कि ये गुफा पाकिस्तान में होती, वहां के बच्चे फंसते तो खुद ही बम-वम फोड़ के गुफा उड़ा देते और शान से बाहर आ जाते। ’

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