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हिंदी कहानियां - भाग 198

न खोना मोना


न खोना मोना मोना किसी से बात नहीं करेगी। वह गुस्से में है। मम्मी ने उसके हाथ से अपना मोबाइल छीन लिया। कहा, “दिनभर गेम खेलती रहोगी, तो आंखें खराब हो जाएंगी।” उससे पहले भैया ने टीवी नहीं देखने दिया। पोगो देख रही थी, उसने आकर फुटबॉल मैच लगा लिया। कोई कुछ नहीं समझता। मोना अब तीसरी कलास में पहुंच गई है। आठ साल की है। दूध पीती बच्ची नहीं है। वह अपने शू लेस तक बांधना सीख गई है और स्कूल ड्रेस बदलना भी। उससे काम करवाते समय सब बहुत मीठा बोलने लगते हैं कि तुम बड़ी हो गई हो, लेकिन जब उसका अपना मन हो, तो सब याद दिलाने लगते हैं कि वह तो छोटी बच्ची है। पापा भी वैसे तो खूब प्यार करते हैं, लेकिन अपना लैपटॉप छूने नहीं देते। मोना ने तय किया, उसे किसी की जरूरत नहीं है। घर छोड़कर निकल जाएगी। अभी हाल ही में तो टीवी पर वह फिल्म आई थी। जिसमें एक छोटी सी बच्ची अकेले ही सारी सड़कें पार कर जाती है। वह एक चिंपांजी तक के पिंजरे में चली जाती है, कोई कुछ नहीं बोलता। वह बच्ची तो चलना भी नहीं जानती थी। जबकि मोना तो दौड़ भी सकती है। अपनी क्लासमेट रूमा को पीछे छोड़ देती है। फ्लैट से निकल गई मोना। लेकिन अपार्टमेंट के गेट से पहले रुक गई। गार्ड अंकल बैठे हुए हैं। दो बार पहले भी उसको बाहर जाने से रोक चुके हैं। गार्ड अंकल भी गंदे हैं। दिनभर ऊंघते रहते हैं। एक-दो बार बाहर के डॉगी भी सोसाइटी में चले आए, लेकिन उनको पता नहीं चला, लेकिन मोना जैसे बाहर निकलेगी, उनकी आंख खुल जाएगी। बोलेंगे, ‘कहां जा रही है, कहां जा रही है।’ मोना को देखकर गार्ड अंकल खड़े हो गए। लो, इधर ही आ रहे हैं। क्या करे मोना? अरे वाह, गार्ड अंकल तो दूसरी तरफ चले गए। अच्छा मौका है। बस, साथ निकल चलो। अब मोना सड़क पर है। एकदम बे़फिक्र। ना पापा डांटने वाले हैं कि चलते हुए धूल मत उड़ाओ। ना मम्मी बोलने वाली हैं कि हाथ पकड़कर चला करो। अब तो वह दौड़ भी सकती है। उसे लगा, उसने तीर मार लिया। मोना सच में दौड़ने लगी। दौड़ते-दौड़ते मोड़ तक पहुंच गई। यहां से मुड़ जाए, तो सोसाइटी वाले देख तक नहीं पाएंगे। अब वह बड़ी सड़क पर आ गई। यह रास्ता उसका देखा हुआ है। मम्मी-पापा के साथ हमेशा इसी रास्ते से निकलती है, लेकिन कार से। पहली बार पैदल यहां तक आई है। बस, दो मिनट में मैगी प्वाइंट आ जाता है। जहां से वह और भैया हमेशा पेस्ट्री लेते हैं। इतनी टेस्टी पेस्ट्री कि क्या कहने। अचानक खयाल आया कि आज तो वह पेस्ट्री भी नहीं ले सकती। उसके पास पैसे कहां हैं? वह कुछ मायूस सी हुई। लेकिन वह दुकान आ क्यों नहीं रही? वह पैदल चलती जा रही है। इतनी सारी खाली जगहें कार से दिखती भी नहीं थीं। ये छोटी-छोटी दुकानें कब नजर आती थीं? मोना कुछ हैरान होने लगी। यह रास्ता वही है, जिससे रोज आती-जाती है? अब उसे डर लगने लगा। वह क्या करे? लौट जाए? उसने चारों तरफ देखा। उसे मोड़ पर साइकिल की दुकान दिखी। याद आया, पापा एक बार उसकी साइकिल में हवा भरवाने इसी दुकान तक आए थे, लेकिन वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे? वह रोंआसी हो चली थी। तभी एक पुलिस अंकल को उसने देखा। वह और डर गई। उसने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। उसे रोता देख पुलिस अंकल की नजर उस पर पड़ी। “अरे, यह छोटी बच्ची किसकी है भाई?” जवाब किसी ने नहीं दिया, लेकिन जमा कई लोग हो गए। “कैसे मां-बाप हैं, बेटी को छोड़कर बाजार गए हैं।” पुलिस अंकल कुछ चिड़चिड़ेपन से बोल रहे थे। मोना और डर गई। वह और जोर से रोने लगी। “अरे, रोओ मत, रोओ मत।” पुलिस अंकल की आवाज कुछ मुलायम हो गई, “कहां हैं तुम्हारे मम्मी-पापा?” मोना हिचकियां ही लेती रही। “देखिए भाई, पता कीजिए, आसपास की दुकान में लोग सामान चुनने में लगे रहेंगे और बच्चों को भूल जाएंगे।” वह अब दूसरों से बोल रहे थे। तब तक एक आंटी सामने आईं, “अरे, इसको तो मैं जानती हूं। सिन्हाजी की बच्ची है।” मोना की हिचकियां कुछ थमीं, ‘यह आंटी पापा को जानती हैं?’ उस आंटी ने आकर उसका हाथ पकड़ा, “चलो-चलो, मैं तुम्हें पहुंचा देती हूं घर।” लेकिन पुलिस अंकल इसके लिए तैयार नहीं थे, “रुकिए-रुकिए, अब यह पुलिस केस हो गया है। मेरे कहे बिना कोई कहीं नहीं जाएगा।” पुलिस अंकल ने अब उससे पूछा, “तुम जानती हो इनको?” मोना ने ना में सिर हिलाया। सब जैसे आंटीजी पर चिल्लाने लगे। किसी ने कहा, “यह बच्चा चोर गैंग से तो नहीं।” अब आंटी रोंआसी हो गईं, “मैं ‘प्रभा सोसाइटी’ में रहती हूं। यह देखो मेरी कार, मेरा ड्राइविंग लाइसेंस। अरे, यह मेरे बगल वाली सोसाइटी में रहती है। आप लोग मुझे चोर-चोर मत कहिए। प्लीज।... और ठीक है, मैं बच्ची को नहीं ले जाती, लेकिन इसको ठीक से पहुंचा दीजिए। बस, इस मोड़ के आखिर में ‘सपना सोसाइटी’ में रहती है।” पुलिस अंकल ने रोकने की कोशिश की, लेकिन आंटी रुकी नहीं। कार स्टार्ट कर चल दीं। अब पुलिस अंकल ने मोना से पूछा, “तुम ‘सपना सोसाइटी’ में रहती हो?” अब तक सुबक रही मोना ने ‘हां’ में सिर हिलाया। सिपाही अंकल ने अपनी साइकिल निकाली, “बैठो।” मोना को डर लगा, मां याद आईंर्। कहा था कि अनजान आदमी के साथ कभी मत जाना। लेकिन पुलिस अंकल की बात टालने की भी हिम्मत नहीं पड़ी। दो मिनट बाद मोना अपनी सोसाइटी के सामने खड़ी थी। “यहीं घर है तुम्हारा?” पुलिस अंकल ने पूछा। मोना ने सिर हिलाया। “चलो, पहुंचा दूं।” मोना का मुंह पहली बार खुला, “नहीं, मैं चली जाऊंगी... अंकल।” “जाओ और आगे से कभी अकेली मत निकलना। याद है, वह बच्चा चोर, वह ले जाती तो?” मोना ने फिर सिर हिलाया। उसे याद था। सोसाइटी में वह तीर की तरह घुसी। गार्ड अंकल उसे हैरान होकर देखते रहे। मोना कसम खा रही थी, आगे से कभी अकेली घर से नहीं निकलेगी। मम्मी कितनी परेशान होंगी, रो रही होंगी। उसे डर लग रहा था, वह डांट सुनेगी। लेकिन यह क्या? मम्मी तो उसके कमरे में हैं। अलमारी पर लगा दाग मिटा रही हैं, वही दाग जो उसने स्केच पेन से बनाया था। मोना को देखा, तो मम्मी ने डांटा, “दिनभर सोसाइटी में खेलती रहती हो। कितना गंदा है तुम्हारा रूम?” यानी मां को पता तक नहीं चला कि वह घर से निकल भागी थी? मोना खुश हो गई। वह किसी को नहीं बताएगी, कभी नहीं। शाम को पापा लौटे। फिर उन्होंने लैपटॉप खोला। मोना हमेशा की तरह पापा के पास बैठ गई, “एक बार प्लीज पापा, गेम खेलूंगी।” पापा हंसने लगे, “दिनभर तो तू खेलती रहती है। पहले बता, क्या-क्या किया आज?” मोना ने सब बताया, यह नहीं बताया कि दोपहर को उसके साथ क्या हुआ था। तभी इंटरकॉम की घंटी बजी। पापा ने फोन उठाया, “हां-हां, भेज दो।” और मम्मी से बोले, “अरे देखो, कितने दिन बाद सुषमाजी आई हैं।” मोना खुश हो गई। कोई घर आ जाता है, तो पापा उसे लैपटॉप खेलने को दे देते हैं। खुद बातों में लग जाते हैं। दरवाजे की घंटी बजने पर वह दौड़ी। दरवाजा खोला, ‘ओ माई गॉड... यह... यह तो... वही बच्चा चोर आंटी हैं।’ बच्चा चोर आंटी अंदर आ चुकी थीं। आते ही बोलीं, “सिन्हाजी, आज तो आपकी बेटी ने मुझे बच्चा चोर बना दिया।” पापा-मम्मी दोनों हैरान थे। आंटी बोलती ही रहीं, “दोपहर को अटल चौक पर रो रही थी। एक पुलिस वाला भी था। मैंने कहा कि मैं जानती हूं इसे, पहुंचा दूंगी घर। लेकिन इसने पहचानने से इनकार कर दिया। सोचा, गलती हमारी ही है, इतना कम मिलते हैं कि बच्चे पहचान तक नहीं पाते।” लेकिन मोना ने ये कमाल कब किया? मम्मी-पापा दोनों हैरान मोना को देख रहे हैं। मोना घबराई सी मम्मी-पापा को देख रही है। अब क्या बहाना बनाए। वह तो इतनी छोटी सी बच्ची है। गलती हो गई। लेकिन यह क्यों आ गईं। उफ! बच्चा चोर आंटी। ’

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