ज़िंदगी
ज़िंदगी
*ज़िंदगी*
अगर ज़िंदगी हम जिएँ हो निडर,
घड़ी मुश्किलों की भी टल जाएगी।
चूमकर हर क़दम तब ये तूफ़ाँ कहे-
अब बता,नाव तेरी किधर जाएगी??
आसमानों से बातें हवाएँ करें,
भहरें पर्वत भले,वृक्ष उखड़ें सभी।
धार सरिता की तीखी बहे क्यूँ नहीं-
खुद ब खुद चल के मंज़िल इधर आएगी।।
अगर ज़िंदगी हम जिएँ...........।।
नभ में सूरज अडिग हो के रहता सदा,
चित्त स्थिर किए, हो परम शांत वो।
रात की चाँदनी छिन है जाती भले-
चाँदनी को मग़र रात फिर पाएगी।।
अगर ज़िंदगी हम जिएँ.............।।
कर्म करने में रखता है विश्वास जो,
मन में उसके न चिंता का डेरा रहे।
लक्ष्य पाना ही मन में रहे मात्र यदि-
एक दिन यश-पताका भी लहराएगी।।
अगर ज़िंदगी हम जिएँ...............।।
चींटियाँ अपनी राहें बदलतीं नहीं,
टूट जातीं मग़र वे बिखरतीं नहीं।
यदि लक्ष्य के प्रति रहें हम सजग-
धैर्य को कोई चिंता न दहलाएगी।।
अगर ज़िंदगी हम जिएँ..............।।
फ़िक्र करने से ढीला रहे संतुलन,
मन नहीं संतुलित तो न मंज़िल-मिलन।
ध्यान में,दृष्टि में यदि रहे संतुलन-
बिंदु तक साधना हमको पहुँचाएगी।।
अगर ज़िंदगी हम जिएँ.................।।
होकर निश्चिंत यदि हम जिएँ ज़िंदगी,
ज़िंदगी भी करेगी हमें वंदगी।
मुश्किलों में अगर मुस्कुराते रहें-
मौत भी अंत में मात खा जाएगी।।
अगर ज़िंदगी हम जिएँ हो निडर,
घड़ी मुश्किलों की भी टल जाएगी।।
© डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Babita patel
18-Jan-2023 03:34 PM
beautiful poem
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Renu
18-Jan-2023 10:21 AM
👍👍🌺
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Punam verma
17-Jan-2023 08:51 AM
Nice
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