Ekta Singh

Add To collaction

लेखनी कहानी -16-Jan-2023

*****स्वाभिमान******
          ******************

*****घर की मुर्गी दाल बराबर पता है आपको पता है कौन होती है?? सोचो ? एक नारी??जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता,कितना भी अच्छा करने की कोशिश करे ?लेकिन उस नारी का महत्व करने वाले बहुत कम पुरुष होते हैं।

इस पुरुष प्रधान देश में एक महिला आकाश में हवाई जहाज भी उड़ा ले फिर भी उसको ताना मारना लोग नहीं छोडते।
आज भी अगर एक लड़की रात को देर से घर आती है तो लोग गलत नजर से देखते है।

आपको एक सच्ची कहानी के माध्यम से बताती हूँ कैसे एक महिला घर की मुर्गी दाल बराबर है
यह कहानी उर्वशी की है*****************
उर्वशी को जानने के लिए 20 साल पीछे ले चलती हूँ। उर्वशी पढ़ाई-लिखाई मे अव्वल नंबर की लड़की थी। उसके 12वीं की कक्षा में 99 परसेंट मार्क्स आए थे। वह बहुत ही महत्वकांक्षी लड़की थी।
जब उर्वशी नौवीं कक्षा में आई तभी से उसका सपना एयर होस्टेस बनने का था।उसके सपने को पूरा करने के लिए उसके माता पिता ने पूरा सहयोग दिया। और उसने 12वीं के बाद एयर होस्टेस का कोर्स ज्वाइन कर लिया उर्वशी ने 3 साल का डिग्री कोर्स करने के लिए फॉर्म भर दिया।
अब उर्वशी अपना कोर्स कंप्लीट करने के लिए बहुत मेहनत से दिन-रात लगी रहती।

इस साल उर्वशी का आखरी साल था।एक दिन की बात है उर्वशी घर पर ही थी। पापा के दोस्त मिस्टर शर्मा और उनकी पत्नी अपने बेटे के साथ हमारे घर आए। हम सब लोगों ने उनका बहुत स्वागत किया।
उनके बेटे सार्थक को उर्वशी बचपन से ही जानती थी  दोनों बचपन के अच्छे दोस्त थे। लेकिन जैसे ही बड़े हुए दोनों अपनी-अपनी पढ़ाई में बिजी हो गए।
सार्थक को देखकर उर्वशी खुश हो गई। सभी लोगों
नें रात का खाना खाया।और पुरानी यादें ताजा की।
रात को बातें करते-करते  पता ही नहीं चला बहुत टाइम ऐसे ही बीत गया। फिर वे लोग रात के 1 बजे के आसपास  घर से चले गए।

अगले दिन उर्वशी अपने इंस्टिट्यूट जाने को तैयार
हो रही थी। तभी उसके मम्मी ने ऐसा कुछ कहा कि वह सोच में पड़ गई।
वह अपनी सोच में डूबे हुए इंस्टिट्यूट पहुँच गई। शाम को जब वह घर पहुँची। फिर उसकी मम्मी  ने फिर वही बात छेड़ दी।
फिर तो उर्वशी गुस्सा आ गया उसने पापा को बोला पापा! मम्मी को समझा दो मुझे बार-बार एक ही बात नहीं करें। मुझे अभी शादी नहीं करनी है मेरा कोर्स पूरा हो जाने दो,और जब तक मेरी जॉब नहीं लग जाएगी तब तक मैं शादी नहीं करूँगी।
उसके पापा नें मम्मी को प्यार से समझाया ।क्यों परेशान करती हो बच्ची को? 
उर्वशी पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई।
वह अच्छे से जानती थी कि उसकी माँ कैंसर की मरीज़ है।15 साल पहले किडनी में कैंसर हो गया था इसी कारण एक किडनी निकलवानी पड़ी। उसकी मम्मी एक किडनी के सहारे ही जिंदा थी। वह बार-बार एक ही बात कहती थी मेरे सामने शादी कर ले फिर कहीं मुझे कुछ हो गया तो मैं तेरी शादी भी नहीं देख पाऊँगी।
हफ्ते तक घर में यही नाटक चलता रहा।
वह परेशान हो गई थी। फिर उसने सार्थक को फोन मिला दिया। सार्थक उर्वशी को शुरू से ही पसंद
करता था। जब उसे फोन पर पता लगा कि उर्वशी अभी शादी नहीं करना चाहती है यह उसको अच्छा नहीं लगा लेकिन उसने बात को संभालते हुए उर्वशी
को समझाया कि वह सब को समझाएगा।
और बात कुछ महीनों के लिए टल गई। सार्थक उर्वशी से फोन पर बात करता रहता था।

उर्वशी की मम्मी को इसी बात की खुशी थी चलो दोनों बच्चे आपस में बात तो कर रहे हैं।

आखिरकार उर्वशी का कोर्स पूरा हो गया और उसको डिग्री मिल गई। अब उर्वशी का सपना पूरा होने जा ही रहा था और उसकी जल्द ही जॉब लग गई।
अब फिर उर्वशी की मम्मी ने शादी की बात छेड़ दी। उसने अपनी मम्मी को समझाया लेकिन वह अब कुछ बात सुनने को तैयार ही नहीं थी।
उर्वशी को हार कर माँ की बात माननी पड़ी कुछ ही महीनों में उर्वशी की शादी सार्थक से हो गई। शादी के बाद उर्वशी दिल्ली चली गई।

उर्वशी को दोनों काम संभालने थे अपनी जॉब को भी और अपनी ससुराल को भी।
सार्थक अपने पिता का बिजनेस संभालता था।वह मनमौजी लड़का था। उसका काम में ध्यान ही नहीं होता था।
अपने माता-पिता का इकलौता लड़का था। उसके माता-पिता उससे कुछ नहीं कहते उर्वशी एक समझदार लड़की थी। वह यह नहीं चाहती थी कि उसके सास-ससुर को कुछ भी कहने का मौका मिले वह सभी काम अपने सही समय पर लेती थी।
धीरे धीरे समय बीतने लगा। इसी दौरान उर्वशी ने एक बेटी को भी जन्म दिया ।अब सार्थक के पापा ने सारा बिजनेस सार्थक के नाम कर दिया था। सार्थक इतना लापरवाह था कि सारा कारोबार पानी में डुबो दिया।
एक दिन ऐसा भी आ गया कि कारोबार में ताला  लग गया। अब सारी जिम्मेदारी उर्वशी पर ही आ गई थी। सार्थक सारा दिन घर पर ही बैठता। सार्थक के माता- पिता उसकी सेवा में लगे रहते।
उर्वशी कभी दिन की, कभी रात की शिफ्ट करती।
फ्लाइट से आते-आते वह थक जाती थी।
लेकिन यह घर में किसी को नहीं दिखता था।
उर्वशी जब  सार्थक को कहती कि तुम बाहर जाकर कुछ काम करो सारा दिन घर बैठे रहते हो।
तो सार्थक उससे लड़ने लगता। अब तो यह रोज का सिलसिला बन गया था।
सार्थक एक गिलास पानी भी खुद से नहीं लेता। जैसे ही वह घर आती वह अपना हुकुम चलाने लगता।
उसकी बेटी भी अब 15 साल की हो गई थी। घर में उसे क्षण भर के लिए भी आराम नहीं मिलता।
अब उर्वशी की कमाई से ही यह घर चल रहा था।

फिर भी किसी को उसका महत्व नहीं था।

क्या एक औरत कोई स्वाभिमान नहीं होता????

अगर जरा सा भी उर्वशी बोलती तो सभी उसके ऊपर चढ़ जाते।
यह कहानी उर्वशी की ही नहीं हमारे भारत देश के ना जाने कितने घरों की है??
आप लोग मुझे बताइए ?यहाँ किसकी गलती है? एक औरत सब कुछ करें फिर भी इतना नीचा क्यों दिखाया जाता है? वह क्यों घर की मुर्गी दाल बराबर है??
क्या इस समाज को बदलने की जरूरत नहीं है?
इसका जवाब मैं आप लोगों पर छोडती हूँ।

एकता सिंह चौहान
नई दिल्ली


   7
4 Comments

Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:56 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

Reply

Abhinav ji

17-Jan-2023 08:06 AM

Very nice 👍👌

Reply

Varsha_Upadhyay

16-Jan-2023 10:30 PM

Nice 👍🏼

Reply

Ekta Singh

16-Jan-2023 11:01 PM

Thankyou mam

Reply