संदेश
गीत
*संदेश*
मोहब्बत का मतलब बताने चले हैं,
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।
अँधेरा कहीं रह न जाए ज़मीं पे-
पुनः रश्मि रवि की उगाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।।
न जाने कहाँ खो गयी है मनुजता,
सितम आज ढाती नज़र आती पशुता।
समझ भ्रांतियों से हुई है प्रदूषित-
उन्हीं भ्रांतियों को भगाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।।
आज खिलने से पहले कली सोचती है,
कि दुनिया मुझे बेवजह नोचती है।
खिलूँ ना खिलूँ डर ये रहता हमेशा-
इसी डर को मन से मिटाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।।
माता-पिता,पुत्र-पुत्री के रिश्ते,
इतने नहीं थे कभी पहले सस्ते।
बढ़ी बेवजह जो हैं रिश्तों में दूरी-
उन्हीं दूरियों को घटाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।।
बगल देश से रोज मिलती है धमकी,
कुछ अपने भी हैं जिनसे बनती है उसकी।
नहीं अच्छा लगता है वर्ताव ऐसा-
इसी भाव को हम जताने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।
राष्ट्र की शक्ति रहती निहित एकता में,
निखरता चमन पुष्प की भिन्नता में।
यही दास्ताँ अपने चमने वतन की-
तुम्हें,दुनिया वालों, सुनाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।।
नहीं डालना अपनी गंदी नज़र तुम,
नहीं तो तुम्हें भेज देंगे जहन्नुम।
हमारी है फितरत गले से लगाना-
हसीं इस अदा को लुटाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।।
मिले जल सभी को सदा स्वच्छ निर्मल,
सदा सर-तड़ागों में खिलता कमल।
प्रकृति-प्रेम से रहे धरती अघाई-
गरीबों की बस्ती बसाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।
पुनः रश्मि रवि की उगाने चले हैं।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Renu
18-Jan-2023 10:39 AM
👍👍🌺
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Abhinav ji
18-Jan-2023 08:03 AM
Very nice 👌
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सीताराम साहू 'निर्मल'
17-Jan-2023 11:17 PM
बेहतरीन
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