" लो इतने रुपये ले लो, इतना ज्ञान दे दो।ज्ञान कोई वस्तु नहीं है।ज्ञान लेने वाले के मन पर निर्भर है उसका ज्ञान प्राप्त करना। वह तो व्यक्ति के आंतरिक लगाव के स्तर पर निर्भर है।क्लास में या अन्यत्र कोई बैठा तो है शरीर से लेकिन मन कहाँ बैठा है? उपनयन क्या है?उपनिषद क्या है?उप आसन क्या है?मन से क्या है?शिक्षक का सम्बंध तो विद्यार्थी से है। गुरु का सम्बंध तो शिष्य से है।"
अनन्त से बुद्धिमत्ता...!?
ब्रिट्रेन में एक शोध हुआ है कि कुशाग्र बुद्धिवान में काम काजी बुद्धि का अभाव होता है।
आत्मा अनन्त का द्वार होता है।आंतरिक दीप प्रज्वलन या अंतर चिंतन पर कार्य में सामजिकता ,नियमितता, दैनिक दिनचर्या भी अव्यवस्थित होती है।
कोई सुबह उठा, उसके मस्तिष्क में विचार आने शुरू हो गए।उन पर यदि वह कार्य करना शुरू न करे तो वे गए।आवश्यक नहीं कि वे दुबारा आएं।लेकिन दिनचर्या ध्वस्त।
ए पी जे अब्दुल कलाम की सगाई तय हो गयी थी,वे जिस हालात में थे कि अपनी सगाई में नहीं जा सके।ऐसे में ये समाज..?! समाज इसको क्या कहेंगे? ये एक परिवार व संस्था के लिए व्यवधान भी हो सकता है । उसे नवीनता, निरन्तरता से मतलब नहीं है, उसे तो परम्परा से मतलब है, एक व्यवस्था बन गयी -उस पर कार्य करना।लेकिन अनन्त से जुड़ी प्रबुद्धता निरन्तर होती है, स्थाई नहीं।
बिल गेट्स के बचपन में क्या था?वे सोते रहते थे या पढ़ते रहते है या पढ़ी हुई विषय सामग्री पर चिंतन मनन करते रहते थे।कभी समय मिलता तो अपनी छोटी बहिन के साथ खेल लेते। समय बीता, अपनी बहिन के साथ भी खेलना बंद कर दिया।सोना, पढ़ना, सोंचना, लिखना..... माता पिता को चिंता होने लगी वे उन्हें आलसी भी कहने लगे।अन्य बच्चों की तरह सक्रियता नहीं, न घर के कार्यों में हाथ बंटाना, न ही हम जोली बच्चों के साथ खेलना कूदना।स्कूल में भी अन्य बच्चों से दूर हो अकेले रह स्वध्याय चिंतन मनन आदि में रहना।माता पिता को चिंता हुई।एक मित्र ने सुझाव दिया कि अपने पुत्र को किसी मनोवैज्ञानिक को दिखाया। उन्हें उनके माता पिता एक मनो वैज्ञानिक के पास ले गए। मनोवैज्ञानिक ने एकांत में उनसे काफी समय बिताया,बातचीत की। मनोवैज्ञानिक में बाद में माता पिता को आप का बालक काफी कुशाग्र बुद्धि का है।उसे डिस्टर्ब करने की जरूरत नहीं।उसे अपने हालात पर छोड़ दो ,आपका काम तो सिर्फ पालन पोषण व संरक्षण है।माता पिता ने ऐसा ही किया, उन्हें टोंकना बंद कर दिया।समय गुजरा।आज पूरी दुनिया उन्हें जानती है। पश्चिम में अनेके देश ऐसे हैं जिनमें 10 में तीन तो वैज्ञानिक हैं ही। भारत में लाखों विज्ञान के शिक्षक, विद्यार्थी, शिक्षित है लेकिन उनमें कैसी भी अपने विषय में के अनुरूप व्यवहारिकता नहीं।अपने विषय में कोई योगदान नहीं। दस साल पहले अमेरिका की एक संस्था भारत के एक विश्व विद्यालय से तीन वैज्ञानिक मांगती है, वह विश्व विद्यालय तीन वैज्ञानिक नहीं दे पाया।हालाकिं उस विश्वविद्यालय से प्रतिवर्ष अनेक पी एच डी करके बाहर निकलते। जो विद्यालय के टॉपर होते है उनकी भी हालत खस्ता होती। हम कहते रहे हैं कि देश मे सबसे बड़ा भृष्टाचार है-शिक्षा। 18 साल पहले समाचार आया था कि देश के अनुसंधानशालाओं में शोधकर्ताओं की कमी।एक अभिवावक बोले,आज कल की पढ़ाई ही थी नहीं।हम ने कहा क्या अभिवावक चाहता है अपने बच्चे को वैज्ञानिक बनाना?फिर हमें उन्हें समझाया, तो वे निरुत्तर हो गए।हमें तो कमाऊ पूत चाहिए।वैज्ञानिक होने, विद्वान होने,प्रबुद्धता में जीने की शर्तें तो अन्य है।जिसमें शिक्षक, शिक्षित, शिक्षा के ठेकेदार भी दूर हैं। हमने अपने जीवन में देखा है कि कुछ बच्चे ऐसे पढ़ कर निकल गए जो शिक्षकों की नजर में खास नहीं थे लेकिन आज वे अपने क्षेत्र में खास हैं। कमाऊ पूत होने लिए पढ़ना अलग बात है, ज्ञान के लिए पढ़ना अलग बात है।
ज्ञान में होना अलग बात है, नौकरी के लिए व रुपयों के ज्ञान का इस्तेमाल करना अलग बात है।अकबर के दरबार में एक मंत्री के गुरु आये।वे तीन दिन नहीं बोले, दरबार में अनेक ने कहा कि गुरुवार कुछ बताइए।लेकिन वे खामोश रहे।तीन दिन बाद बीरबल ने युक्ति सुझाई। दरबार में सबने चर्चा शुरू की ,गुरु जी भी कुछ कुछ बोलने शुरू हो गए।धीरे धीरे औऱ लोग खामोश होते गए उनका बोलना बढ़ता गया। चलते फिरते जमाने व संस्थाओं के विद्वानों से हट कर होते हैं वे विद्वान।शोध की संस्थाओं, सेमिनारों में वे पढ़ते है अपने शोध पत्र।मन में आया हमने।लिख दिया, कल उसे भूल गए।अब मन में नया आ गया..... प्रबुद्धता का कोई छोर नहीं, निरन्तरता.... पुराने का भी जरूरी नहीं ख्याल ?! निरन्तरता तो भविष्य की ओर ले जाती है, अतीत की ओर नहीं।
शिक्षा व शिक्षण तो मानसिक प्रक्रिया है। वह हमें अपने वर्तमान स्तर से आगे ।ले जाने की प्रक्रिया है ।अनेक पढ़ लिख कर कमाऊ पूत बन जाएं तो इसका मतलब ये नहीं कि वे अपने चेतना, समझ के वर्तमान स्तर से ऊपर उठ गए?
Niraj Pandey
11-Oct-2021 11:56 PM
वाह बहुत खूब
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Seema Priyadarshini sahay
30-Sep-2021 06:08 PM
नाइस
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