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गीत (निर्झर)

*गीत*(निर्झर)

पर्वत की ऊँची चोटी से,
 झर-झर निर्झर बहता है।
लेकर सुंदर रूप नदी का-
जा सागर से मिलता है।।

प्यासी धरती बाट जोहती,
फसलें राह निरखतीं हैं।
व्याकुल होकर प्राणी भी सब,
चारो-तरफ भटकतीं हैं।
पर,लख अमृत जल सरिता का-
मन भी विकल बहलता है।।
      जा सागर से मिलता है।।

प्रकृति सुंदरी का आभूषण,
प्यारा निर्झर लगता है।
अवनि-गले का हार सुहाना,
देखो कितना जँचता है।
गीतमयी जल-धार सरित बन-
पीर हृदय की हरता है।।
     जा सागर से मिलता है।।

लोचन-सुख का स्रोत यही है,
अनुपम छवि का आलय यह।
ज्ञान-कुंड बन अवनि पधारे,
मधुर गीत-विद्यालय यह।
सुन-सुन कर इसकी स्वर-लहरी-
प्रीति-भाव उर जगता है।।
      जा सागर से मिलता है।।

निर्झर कहें,कहें या झरना,
यह प्रपात भी कहलाता।
दुख वियोग जो उभरे उर में,
उसको भी यह सहलाता।
निर्झर-हिमगिरि-विमल रश्मि लख-
मन-सरोज नित खिलता है।।
   लेकर सुंदर रूप नदी का-
    जा सागर से मिलता है।।
                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

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7 Comments

kashish

02-Oct-2023 10:08 AM

V nice

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Sant kumar sarthi

21-Jan-2023 02:25 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Varsha_Upadhyay

20-Jan-2023 09:00 PM

बहुत खूब

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