रेडलाइट
कहानी रेडलाइट की
रोज की तरह मेरी कार रेडलाइट पर रुकी हुई थी। मेरा ऑफिस हरियाणा में सोहना रोड पर है मैं रोज देर रात वहाँ से दिल्ली आता था।
अक्सर रेड लाइट पर देर रात को कुछ छोटे बच्चे फूल डस्टर, पेन, खिलौने इत्यादि बेंचते थे। मैं कभी -कभी उनसे कुछ ले लेता था पैसे के साथ -साथ उन्हें बिस्किट, चिप्स के पैकेट इत्यादि पकड़ा देता मुझे उन बच्चों की आँखों में एक चमक दिखती जिससे मुझे बहुत खुशी मिलती लेकिन एक ही समान मैं रोज -रोज नहीं ले सकता था।
जबकि मेरी बेटी कहती -"पापा आपलोग इन बच्चों से समान मत लिया करो हाँ उन्हें खाने के लिये चीजें ज़रूर दे दिया करो। पैसे सारा इनके मालिक रख लेते हैं और इन बिचारों को दस पाँच रूपये पकड़ा देते हैं. "
रोज की तरह उस दिन भी रेडलाइट पर मेरी कार रुकी थी
पूस की बर्फ़ीली रात, सन सन बहती हवा हाड़ को कँप कंपाती हुए पास से गुज़र रही थी दूर कहीं कुत्ते आपस में तेज तेज भौंक रहे थे। रात का सन्नाटा पूरी तरह से व्याप्त था। सड़क पर इक्की दुक्की गाड़ियां ही दिख रही थीं।आज यहाँ बच्चे भी नहीं दिख रहे थे।
मैंने गाड़ी में हीटर ऑन कर लिया था तभी मेरी नज़र बाहर की तरफ गई। उस दिन मैंने लगभग सत्तर साल की बूढ़ी माँ को जुराब और पेन बेंचते देखा —दुबली पतली काया आँखों में सूनापन जैसे अपना डेरा जमा चुका हो। एक पतली शाल ओढ़े, पैरों में मामूली सी चप्पल पहने ये वो मेरी तरफ आ रही थीं। ये दोनों चीजें मेरे पास बहुत अधिक थीं लेकिन मैं उन्हें देखकर इतना द्रवित हो गया कि कुछ जुराब लेने का मन बना लिया पर तुरंत लाइट ग्रीन हो गई और यातायात के नियमों के अनुसार मुझे आगे बढ़ना पड़ा।
मैं रास्ते भर यही सोचता रहा कि आखिर क्या मज़बूरी होगी बूढ़ी अम्मा की जो वो इस तकलीफ़ का सामना कर रही हैं। दूसरे दिन मुझे बूढ़ी माँ वहाँ नहीं दिखीं। एक बच्चा जो गुलाब का फूल बेंच रहा था उससे मैंने उनका हुलिया बताते हुए पूछा बेटा क्या तुम उन्हें जानते हो?
लड़का बोला - " साहब कल रात को रॉंग साइड से आती एक तेज रफ़्तार की गाड़ी मीरा दादी कुचल कर भाग गई।
बहुत देर तक वो सड़क पर पड़ी रहीं और बहुत खून बहने तथा तेज ठंड से उनकी मौत हो गई। आपने आज का अख़बार नहीं पढ़ा? महानगर के समाचार में खबर छपी थी और ये भी लिखा था कि गाड़ी का मालिक शराब पीकर गाड़ी चला रहा था। "
मैं संवेदना व्यक्त कर पाता तबतक फिर लाइट ग्रीन हो गई।
—अंदर की उमड़ती हुई वेदना को दबाते हुए आगे बढ़ना पड़ा।
स्नेहलता पाण्डेय \'स्नेह \'
प्रिशा
03-Feb-2023 11:04 PM
👌👌👌
Reply
Rajeev kumar jha
23-Jan-2023 05:02 PM
Nice
Reply
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
22-Jan-2023 07:38 PM
बेहतरीन
Reply