अंत भला तो सब भला
अपने जीवन के ५० पतझड़ देखने के बाद आज सुरेश जी के जीवन में एक नई उम्मीद की किरण आने की संभावना
थी। अपने नाम के अनुरूप ही उनके सबसे छोटे बेटे सौम्य का आज यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC)! यह एक सिविल सर्विस एग्जाम है जिसे हमारे देश की दूसरी सबसे कठिन परीक्षा भी माना गया है, का परिणाम आने वाला था। यही वजह थी कि कल रात से ही सुरेश जी को नींद नहीं आ रही थी हालांकि उनके बेटे सौम्य ने उन्हें अपने तरीके से बार-बार समझाने की कोशिश भी की थी लेकिन फिर भी एक पिता का दिल मान ही नहीं रहा था, वह तो एक बच्चे की तरह बेचैनी की जिद अपने शरीर और मन में लिए बरामदे में बेचैन बैठकर सूर्य की पहली किरण के आने का इंतजार कर रहे थे और सोच रहे थे कि क्या यह आज आने वाली सूरज की पहली किरण हमारे परिवार में खुशियों की किरण बनकर आएगी?
सुरेश जी सोच ही रहे थे कि तभी उनकी धर्मपत्नी! जो हर कदम पर आज तक उनका साथ देते हुए आई थी, आज भी अपने पति की उस अवस्था से भलीभांति परिचित थी। भोर की बेला में ही नित्य क्रिया और घर की साफ- सफाई के पश्चात पूजा पाठ से निवृत्त होकर वह अपने पत्नी धर्म का पालन करने के लिए उस दिशा में बढ़ चली आई थी जहां पर सुरेश जी बैठे सुबह की लालिमा को देखते हुए सोच में डूबे हुए थे।
" ऐ जी! ( पत्नी द्वारा पति को बुलाया जाने वाला शब्द ) क्या देख रहे हैं, जरा हमें भी तो बतलाइए?"
सुरेश जी की पत्नी प्रभा ने कहा।
" का ( क्या ) देखेंगे, ५० सालों से तो जीवन का संघर्ष ही देख रहे है। सात भाई -बहनों में सबसे छोटे थे तो पिता ने जैसे-तैसे सरकारी स्कूल में पढ़ा कर हमें बड़ा कर दिया। हमने ( मैंने ) भी पिता पर बोझ ना बनते हुए कम उम्र से ही पढ़ाई के साथ साथ अपने से कम कक्षा के बच्चो को ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्चा निकालना शुरू कर दिया। अपने पिता को भी ताउम्र परेशानियों का बोझ ढो़ते हुए जीते देखा। कॉलेज पास ही नहीं कर पाए थे कि तुम हमारे ( मेरे ) जीवन में आ गई। हम ( मैं ) नहीं चाहते थे कि उस वक्त शादी हो लेकिन अम्मा और बाबूजी के दबाव में शादी करनी पड़ी।
इतनी तो किस्मत अच्छी थी कि ऐसी पत्नी जीवन में आई जो हमे समझती थी, हमारे हर कदम पर उसका ऑंख - मूॅंदकर साथ होता था। यदि कोई नासमझ पत्नी मिल जाती तो हमारा यह जीवन नरक ( नर्क ) हो जाता लेकिन शुक्र है भगवान का कि उन्होंने हमारे जीवन में संघर्ष तो दिया लेकिन साथ ही ऐसे जीवनसाथी का साथ भी दिया जो किसी भी परिस्थिति में हमें ( मुझे ) मुस्कुरा कर ही दम लेती है और अभी भी तुम ऐही लिए ( इसीलिए ) आई हो।" सुरेश जी ने कहा।
" कितना बार तो आपसे कहे हैं कि सब ठीक होगा और मुन्ना भी तो बोला है ना कि आप दोनों चिंता ना करो, जो होगा उसको झेलने के लिए उ ( वह ) पूरी तरह तैयार है। हमको अपने बचवा ( बेटा ) पर पूरा भरोसा है। मेहनत तो उ ( वह ) बहुत किया है इस बार। दो बार फेल होने के बाद हमरा ( हमारा ) बचवा ( बेटा ) हताश नहीं हुआ बल्कि औऊर ( और ) मेहनत से पढ़ाई करने लगा। बिल्कुल आप ही पड़ गया है एक बार जो जिद पकड़ लेता है उसको छोड़ता नहीं है। आपको भी बहुतो ( बहुत ) बार देखे है कि जो काम पहली बार में नहीं हुआ है उसे दूसरी, तीसरी, चौथी बार में भी करके दिखाएं है। हमको ( मुझे ) तो खुशी होता है कि वह आप पर.... ।"
प्रभा कुछ और आगे बोलती उससे पहले ही सुरेश जी बीच में ही बोल पड़े " इ ( ये ) ना बोलो कि वह हम ( मुझ ) पर गया है। भगवान ना करे कि उसकी किस्मत हमरे ( मुझ ) जैसी हो। एक - एक चीज के लिए तुमको भी तरसाए हैं और अपने बचवा ( बेटे ) को भी। अब इतना हिम्मत नहीं रहा कि यें देखे कि हमरे बचवा ( हमारे बेटे ) के साथ-साथ उसकी बहुरिया ( पत्नी ) और हमरे ( हमारे ) पोता - पोती भी तरसे। इहे (यही) वजह है कि आज चिंता थोड़ा बढ़ गया है।"
" जानत ( जानते ) है ना कि चिंता जो होत ( होता ) है उ ( वह ) चिता समान होत ( होता ) है ।" प्रभा ने कहा।
" जानत ( जानते) है, बिल्कुल जानत ( जानते ) है लेकिन तुम इ ना जानत ( यह नही जानती ) हो कि हमरा बचवा ( हमारा बेटा ) जो परीक्षा दिए रहे ( दिया है ) उसमें लगभग ५,००,००० बच्चें भी उसके साथ परीक्षा दिए रहे जिनमें केवल १,००० से भी कम बचवा सब पास करी ( बच्चे पास करेंगे)। हमरा ( मुझे ) चिंता इ ( यह ) है कि १,००० में हमारा बचवा ( बेटा ) का नाम होई कि ना ( होगा की नहीं ) ।
"होई ओकर नाम जरूर होई , हमरा मन कहत है कि हमरा बचवा पास होई ( उसका नाम जरूर होगा, मेरा दिल कहता है कि मेरा बेटा पास होगा )।" प्रभा ने अपनी आवाज में बुलंदी लाते हुए कहा।
सुरेश जी को अपनी पत्नी के कहे शब्दों से इतना तो असर हुआ कि अब तक जो वह निराशा के समंदर में गोते लगा - लगा कर अपने आप को डूबा हुआ महसूस कर रहे थे अब उन्हें लग रहा था कि उनके जीवन की नैया पार अवश्य लग जाएगी।
सुरेश जी अपनी दुकान पर बैठे दुकानदारी देख ही रहे थे कि तभी उनका छोटा मोबाइल बज उठा। कांपते हाथो से उस वक्त उठाया गया वह मोबाइल उनके अंदर चल रहे कंपकंपी को बखूबी बयां कर रहा था।
उसी अवस्था में सुरेश जी ने फोन उठाया तभी उनके कानों ने जो सुना उसे सुनते ही उनकी ऑंखों से मोती बन आंसू झरझर गिरने लगे, उनकी हालत देखकर दुकान में काम कर रहे सभी लोग इकट्ठे हो गए । ग्राहकों तक की निगाह उन्हीं पर थी तभी उन्हीं में से एक ने उनके हाथों से मोबाइल छीन लिया और अपने कानों में लगा लिया लेकिन दूसरी तरफ कोई नहीं था, कॉल कट चुकी थी।
उस वक्त वहां पर मौजूद सभी की आंखों और जुबान पर सिर्फ एक ही सवाल था, क्या हुआ और आप रो क्यों रहे है?"
दुकान के भीतर एकदम खामोशी पसर गई थी और सभी को सुरेश जी के बोलने का इंतजार था। उस खामोशी को चीरते हुए आवाज आई "अंत भला तो सब भला "
उस दुकान में मौजूद सभी लोग उनके द्वारा कही गई छोटी सी बात को समझ चुके थे और सभी इस बात को जानते थे कि सुरेश जी जैसा नेक दिल इंसान विपरीत परिस्थितियों में भी स्थिर ही रहा और इन जैसे भले इंसान के जीवन में तो भला होना ही चाहिए।
सुरेश जी की ऑंखों से बहते हुए खुशी के ऑंसू इस बात को बयां कर रहे थे कि शुरुआत जितनी भी बुरी हुई हो यदि उसका अंत अच्छा होता है तो सब कुछ अच्छा ही होता है।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗💞💓
# म
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
01-Feb-2023 04:35 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Pranali shrivastava
31-Jan-2023 07:13 PM
V nice 👍🏼
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Rajeev kumar jha
23-Jan-2023 05:02 PM
Nice
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