ऐ खुदा!
ऐ ख़ुदा!
ऐ खुदा! तू दिखा रौशनी,
तेरा बंदा अँधेरे में है।
चाँद भी रूठा लगता है मुझसे-
कर दिया फ़ीकी ख़ुद चाँदनी।।
इक सहारा बस तेरा बचा है,
मेरी तक़दीर में क्या रचा है?
अब डगर ज़िंदगी की न सूझे-
गयी हंस से है बिछड़ हंसिनी।।
प्रेम की डोर से थे बँधे हम,
साथ रहने की खाते क़सम।
हो गयी डोर बंधन की ढीली-
बन गयी हंसिनी सिंहनी।।
प्रेम के बोल अब तो न समझे,
लाख कोशिश करो अब न रीझे।
कैसा व्यवहार करता है मौसम-
कैसी क़ुदरत लगे बन-ठनी??
हो गया दिल अब उसका पत्थर,
चेतना-शून्य-संज्ञा निरंतर।
बन गयी भाव-भाषा से वंचित-
गीत-संगीत नीरस-हृदयिनी।।
प्रेम के तत्व को जो न समझे,
भाव-भाषा न जज़्बे को बूझे।
मृतक मन का प्राणी वही है-
व्यर्थ में कहता खुद को धनी।।
ऐ खुदा!तू दिखा रौशनी।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Renu
23-Jan-2023 03:56 PM
👍👍🌺
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अदिति झा
21-Jan-2023 10:59 PM
Nice 👍🏼
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