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स्वयं नहीं कुछ....

गीत
        गीत(16/14)
स्वयं नहीं कुछ.....
स्वयं नहीं कुछ करते हैं जो,
औरों को समझाते हैं।
सत्यवादियों की बस्ती में-
झूठे भी मिल जाते हैं।।

ये हैं बुनते ताना-बाना,
सदा फ़रेबी जालों का।
साथी होते मिथ्यावादी,
कपट-झूठ रखवालों का।
इनका नहीं भरोसा रहता-
झूठी कसमें खाते हैं।।

इनकी रहती मीठी वाणी,
अधरों पर मुस्कान लिए।
गले प्रेम से मिलते हैं ये,
दिल में पर शैतान लिए।
बच कर रहना यारों ये तो-
कभी न साथ निभाते हैं।।

झूठी कथनी,झूठी करनी,
झूठे रिश्ते-नाते हैं।
ओढ़न और बिछावन झूठा,
अन्न झूठ का खाते हैं।
ये होते हैं मीत मौसमी-
मतलब से घर आते हैं।।

सत्य अकेला यद्यपि रहता,
फिर भी पाता विजय सदा।
चंदन तो शीतल ही रहता,
विषधर रहते भले फ़िदा।
ग्रहण भले तम लाता कुछ पल-
रवि-शशि पुनि रह जाते हैं।

सदा परीक्षा जग है लेता,
सच्चे पथ के गामी का।
मिथ्यावादी मिल-मिल रचते,
नित फ़रेब बदनामी का।
फिर भी राही सच्चाई के-
अपनी मंज़िल पाते हैं।।
     सत्यवादियों की बस्ती में,झूठे भी मिल जाते हैं।।
                    ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919446372

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1 Comments

Renu

24-Jan-2023 02:52 PM

👍👍🌺

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