हिंदी कहानियां - भाग 43
बाल्य अवस्था में अकबर की देखभाल एक दाई करती थी। वह उन्हें अपने बच्चे के समान प्यार करती तथा अपना दूध पिलाती थी। एक महान् राजा बन जाने के बावजूद भी अकबर अपनी आया का, जिसे वे ‘दाई माँ’ कहते थे, बहुत सम्मान करते थे। दाई माँ का भी एक पुत्र था। बादशाह अकबर उसे अपने भाई के समान समझते थे। वह सोचते थे कि जिस औरत ने मुझे पुत्र के समान पाला है, उसका पुत्र मेरे भाई के समान हुआ। जब भी उनका आधा भाई उनसे मिलने आता, बादशाह उसका बड़ा आदर-सत्कार करते तथा तोहफे देते थे। कई बार ऐसा भी होता था कि उसकी आवभगत में बादशाह अकबर इतने व्यस्त हो जाते थे कि वह दरबार भी नहीं जाते थे। उनकी यह आदत दरबारियों तथा बीरबल को पसंद नहीं थी, क्योंकि इतने छोटे-से कारण के लिए बादशाह का दरबार में उपस्थित न होना उन्हें हितकर नहीं लगता था। राज-काज सम्बंधी कई विषयों पर विचार-विमर्श करना होता है। देश-विदेश से आने वाले अतिथियों से भी बातचीत करनी होती है। जब बादशाह दरबार में आएँगे ही नहीं, तो काम कैसे चलेगा।
इन सब बातों को सोचकर दरबारीगण बहुत चिन्तित थे। इसलिए बादशाह का हाल-चाल लेने कुछ अन्य दरबारियों के साथ बीरबल उनके महल में गए। बादशाह ने बीरबल से पूछा, “मेरे प्यारे आधे भाई के समान क्या तुम्हारा भी कोई ‘आधा भाई” है?” “जी, महाराज! मेरा भी एक आधा भाई है।” “अच्छा, तुम उसे कभी दरबार में क्यों नहीं लाए? हम भी तुम्हारे आधे भाई से मिलना चाहेंगे।” बादशाह ने इच्छा व्यक्त की। “परंतु महाराज, यहाँ आने के लिए अभी वह बहुत छोटा है।” असमर्थता व्यक्त करते हुए बीरबल ने कहा। ‘परंतु फिर भी तुम उसे यहाँ अवश्य लाओ।” बादशाह ने आग्रहपूर्वक कहा। बीरबल ने बादशाह की बात मान ली। अगले दिन सभी दरबारी यह देखकर हैरान हो गए कि बीरबल एक बछड़े को अपने साथ खींचकर ला रहा है। बादशाह भी हैरत में पड गए और बोले “तुम्हारा दिमाग तो सही है, बीरबल? तुम इस बछड़े को यहाँ क्यों लाए हो?” “महाराज, मैंने तो केवल आपकी आज्ञा का पालन किया है।” बीरबल ने नम्रता से कहा। “बचपन से ही मेरा लालन-पालन गाय के दूध से हुआ है। क्योंकि मैंने उसका दूध पिया है, इसलिए वह मेरी माँ समान हुई और उसका यह बछडा मेरा ‘आधा भाई’ ही तो होगा?” बादशाह अकबर तुरंत ही समझ गए कि बीरबल उन्हें क्या कहना चाहता है और जोर से हँस पड़े। इसके पश्चात् अपने आधे भाई का स्वागत् सत्कार करने को कारण वह कभी दरबार से अनुपस्थित नहीं रहे।