हिंदी कहानियां - भाग 45
एक बार ईरान के बादशाह ने बीरबल की बुद्धिमत्ता की जांच करने के लिए बीरबल को अपने दरबार में आमंत्रित किया। कुछ दिनों की यात्रा के बाद बीरबल ईरान के दरबार में पहुँच गए। विश्राम तथा भोजन करने के पश्चात् उसे बादशाह के दरबार में ले जाया गया। वहाँ पहुंचने पर उसे एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया। राज-दरबार में चार व्यक्ति चार सिंहासनों पर बैठे हुए थे। सभी ने एक समान वस्त्र, आभूषण तथा मुकुट पहने हुए थे। उनके हाव-भाव, सिंहासन पर बैठने के ढंग तथा रंग-रूप समान थे। वे चारों इतने अधिक समान दिखाई दे रहे थे कि उनमें अंतर कर पाना बहुत कठिन था। उनकी समानता देखकर बीरबल असमंजस में पड गये। उसने ईरान के बादशाह को कभी नहीं देखा था, इसलिए वह नहीं जान पाया कि उसे किस व्यक्ति को सलाम करना है। बीरबल ने कुछ क्षण सोचकर एक चतुर योजना से काम लिया।
ह चुपचाप खड़े होकर चारों को देखने लगा। कुछ देर के पश्चात् वह एक व्यक्ति के सामने गया और झुककर कहा “महाराज, मैं आपको सलाम करता हूँ। मैं अपने बादशाह (हिन्दुस्तान के बादशाह अकबर) की ओर से आपके लिए सद्भावना तथा मित्रता का पैगाम लाया हूँ।” सामने बैठा व्यक्ति उठा और बोला “बीरबल, ईरान में तुम्हारा स्वागत् है। तुम सचमुच एक चालाक एवं बुद्धिमान् व्यक्ति हो। पर मुझे यह बताओ कि तुमने हम चारों में से मुझे कैसे पहचाना जबकि हम पहले कभी नहीं मिले .” बीरबल मुस्कुराकर बोला “महाराज, जब मैं बिना बोले चुपचाप सीधा खड़ा था, तब बाकी के तीन व्यक्ति रह-रह कर आपको देख रहे थे। वे शायद आपसे जानना चाहते थे कि अब क्या करना है। जैसा आप करते थे, वैसा ही ये तीनों भी कर रहे थे। पर क्योंकि आप ती बादशाह हैं, आपको तो किसी की नकल करनी नहीं थी। इसलिए आप सीधा सामने देख रहे.” ईरान के बादशाह बीरबल के तर्कसंगत जवाब से प्रभावित हो गए। अब उन्होंने बीरबल की बुद्धिमत्ता की स्वयं जाँच कर ली थी और उन्हें विश्वास हो गया था