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हिंदी कहानियां - भाग 49

एक बार अकबर बीरबल में किसी बात पर अनबन हो गई. अकबर ने गुस्से में आकर बीरबल को नगर छोड़कर जाने का आदेश दे दिया.


अकबर के आदेश के पालन में बीरबल नगर छोड़कर चला गया. वह एक गाँव में अपनी पहचान छुपाकर रहने लगा.

इधर दिन बीतने लगे और अकबर को बीरबल की कोई ख़बर नहीं लगी. बीरबल अकबर का मुख्य सलाहकार होने के साथ-साथ परम मित्र भी था. अकबर को राजकीय कार्यों में बीरबल की सलाह की आवश्यकता महसूस होने लगी. साथ ही उन्हें उसकी याद भी सताने लगी.

उन्होंने सैनिकों को बीरबल को ढूंढने के लिए भेजा. किंतु वे उसका पता न लगा सके. अंत में अकबर ने बीरबल का पता लगाने के एक उपाय खोज निकाला. उन्होंने पूरे राज्य में ये ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई भी आधी धूप और आधी छाँव में उनसे मिलने आयेगा, उसे १००० स्वर्ण मुद्रायें ईनाम में दी जायेंगी. 

ये ख़बर उस गाँव में भी पहुँची, जहाँ बीरबल अज्ञातवास में रहता था. उसी गाँव में एक गरीब किसान भी रहता था. बीरबल ने सोचा कि यदि इस गरीब किसान को ईनाम की १००० स्वर्ण मुद्रायें मिल जायें, तो उसका भला हो जायेगा.

उसने किसान को अपने सिर पर एक चारपाई रखकर अकबर के पास जाने के लिए कहा. गरीब किसान ने वैसा ही किया.

सैनिकों ने जब उस किसान को भरी दोपहरी में अपने सिर पर चारपाई रखकर राजमहल की ओर आते देखा, तो अकबर को इस बात की सूचना दी. अकबर ने किसान को अपने पास बुलवाया. किसान ने अकबर के सामने हाज़िर होकर अपना ईनाम मांगा, तो अकबर ने पूछा, “सच-सच बताओ कि तुम्हें ऐसा करने किसने कहा था?”

भोले किसान ने सब कुछ सच-सच बता दिया, “जहाँपनाह, हमारे गाँव में एक भला मानुस आकर रुका है. उसी के कहने पर मैं सिर पर चारपाई रख आपके पास आया था.”

ये सुनकर अकबर समझ गए कि किसान को सलाह देने वाला व्यक्ति बीरबल ही है. उन्होंने फ़ौरन खजांची से कहकर किसान को १००० स्वर्ण मुद्रायें दिलवाई और सैनिकों को उसके साथ भेजकर बीरबल को वापस आने का पैगाम भिजवा दिया.

पैगाम पाकर बीरबल अकबर ने पास वापस लौट आया.

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