हिंदी कहानियां - भाग 93
एक ब्राह्मण दिल्ली की सैर करने गया था। वह दिल्ली में किसी को पहचानता नहीं था। एक व्यापारी ने दया करके उसे अपने घर मेहमान बना लिया।
उसने ब्राह्मण को भोजन कराया और रात में सोने के लिए एक कमरा दे दिया। उस समय दिल्ली में चारों का बहुत आतंक था।
सिपाही रात-भर भूम-भूमकर शहर में पहरा देते थे। इन पहरेदारों में एक सिपाही स्वयं चोर था। शहर में घूमते-फिरते वह छोटी-मोटी चोरियाँ कर लिया करता था।
वह चोर सिपाही रात में उस व्यापारी के घर में आ गया, जहाँ ब्राह्मण ठहरा हुआ था। उसने उसी कमरे में सेंधा लगाई, जहाँ ब्राह्मण सो रहा था।
उस कमरे में मकान मालिक का एक संदूक रखा था। सिपाही ने उसे उठाया और लेकर चलने लगा। आहत सुनकर ब्राह्मण जाग गया।
उसने संदूक को लेकर भागते सिपाही को पकड़ लिया।
सिपाही ने ब्राह्मण को लालच दिया, तू मुझे छोड़ दे। इस संदूक में से जो कुछ निकलेगा मैं उसका आधा भाग तुझे दे दूंगा।
ब्राह्मण ने सिपाही की बात को नहीं माना। उसने मकान मालिक को जगाने के लिए शोर मचाना चाहा। किन्तु सिपाही ने उसका मुँह पकड़ लिया और स्वयं शोर मचाना शुरू कर दिया। शोर सुनकर व्यापारी जाग उठा।
सिपाही ने कहा, यह व्यक्ति तुम्हारा संदूक लेकर भाग रहा था। मैंने इसे पकड़ लिया है।
सिपाही ने चोर को रंगे हाथों पकड़ा था इसलिए मामला राजदरबार में पहुंचा।
व्यापारी, ब्राह्मण और सिपाही को बीरबल के सामने हाजिर किया गया। बीरबल ने सबसे पहले अपने एक विश्वासपात्र व्यक्ति को अपने पास बुलाया। उन्होंने उसके कान में कुछ कहा और उसे बाहर भेज दिया।
इसके बाद उन्होंने सिपाही और ब्राह्मण को अपने पास बुलाया और दोनों से पूछताछ करने लगे।
कुछ देर बाद बीरबल द्वारा भेजा गया आदमी दौड़ता हुआ आया। उसने बीरबल से कहा, हुजूर, मैं और मेरा बेटा महादेव के मंदिर में दर्शन करने गए थे।
मंदिर से बाहर निकलते समय मेरा बेटा बेहोश हो गया और वहीं गिर गया। उसे वहां से उठाकर हकीम के पास ले जाना है। क्या आप इसके लिए मुझे दो आदमी देंगे ?
बीरबल ने कहा, तुम यहीं खड़े रहो। मुझे तुमसे जरूरी काम है। इस सिपाही और ब्राह्मण को मंदिर भेज रहा हूँ।
ये तुम्हारे बेटे को मंदिर से उठाकर यहां ले आएँगे।
ब्राह्मण और सिपाही मंदिर में पहुंचे। उन्होंने वहाँ बेहोश पड़े लड़के को उठा लिया। रास्ते में ब्राह्मण ने सिपाही से कहा, तुमने ही उस व्यापारी के घर में सेंध लगाई थी।
तुम ही संदूक लेकर भाग रहे थे। मैंने तुम्हें चोरी करने से रोका था। तुमने झूठ बोलकर मुझे चोरी के अपराध में क्यों फँसा दिया था।
सिपाही बोला, मैंने चोरी के माल में से आधा भाग तुम्हें देने के लिया कहा था। फिर भी तुम नहीं माने। अब इसकी सजा तुम्हें भोजनी पड़ेगी।
ब्राह्मण और सिपाही दोनों दरबार में पहुँचे। बीरबल ने सिपाही और ब्राह्मण को सच-सच बताने का आदेश दिया। दोनों चोरी का अपराध एक-दूसरे पर लगाते रहे।
बीरबल ने कहा, यदि तुम दोनों इसी तरह बोलते रहे तो मैं चोर को कैसे खोज पाउँगा ?
बीरबल का प्रश्न सुनकर बेहोश पड़ा लड़का उठ खड़ा हुआ। उसने बीरबल से कहा, श्रीमान, यह सिपाही ही असली चोर है।
इसने ब्राह्मण को चोरी के अपराध में झूठा फंसा दिया है। इसके बाद उसने सिपाही और ब्राह्मण के बीच हुई बातचीत को सुना दिया।
बीरबल ने ब्राह्मण को आदरपूर्वक छोड़ दिया और सिपाही को जेल भेज दिया गया।