हिंदी कहानियां - भाग 107
एक बार एक तेली और एक कसाई शिकायत लेकर बीरबल के पास आए। दोनों अपनी-अपनी बात कह रहे थे।
बीरबल ने उनको रोका और कहा, तुम लोग एक-एक करके अपनी बात बताओ। पहले कसाई अपनी बात बताए।
कसाई बोला, हुजूर! मैं अपनी दूकान में बैठा हुआ था। तब यह तेली मेरी दुकान में आया। इसने मुझसे तेल खरीदने को कहा। मैंने इससे कहा तुम यहीं रुको।
मैं अंदर से बर्तन लेकर आता हूँ।
जैसे ही मैं अंदर गया इसने चुपके से मेरी रुपयों की थैली उठा ली और भाग गया। मैंने इसका पीछा किया और इससे थैली ली।
अब यह कहता है कि यह थैली इसकी है।
कसाई की इतनी बात सुनकर तेली बोला, हुजूर, यह बात ठीक है कि इसकी दुकान में गया था।
इसने मुझसे तेल खदीदा और पैसे भी दिए। जब मैंने पैसों को रखने के लिए अपनी थैली खोली तो इसकी नीयत खराब हो गई। मेरी थैली में मेरी बिक्री के सारे रुपए थे।
इसने मेरी थैली छीन ली। मैंने इसका पीछा किया और इसे पकड़ लिया। अब यह मेरी थैली लौटने से इंकार करता है।
मुकदमा बड़ा पेचीदा था।
दोनों अपनी-अपनी बात कह रहे थे। सुनने में दोनों की बात सच लगती थी।
दरबार में बैठे अधिकारियों ने सोचा- देखें ऐसे टेढ़े मामले का फैसला बीरबल कैसे करेंगे ? बीरबल बुद्धिमान हैं, फिर भी .......।
तभी बीरबल ने आदेश दिया, जाओ एक कढ़ाई में गर्म पानी लेकर आओ।
सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए। आखिर गर्म पानी और कढ़ाई से मामले का क्या संबंध है! लेकिन बीरबल के आदेश का पालन किया गया।
कढ़ाई के आने पर बीरबल ने कहा, रुपयों की थैली पानी में डाल दो।
थैली को गर्म पानी में दाल दिया गया।
बीरबल अपनी जगह से उठे। उन्होंने पानी में झाँककर देखा और आदेश दिया, इस थैली का मालिक तेली है। पानी में तेल की बूंदें चमक रही हैं। ऐसे तेल से सनी हुई थैली तेली की ही सकती है।
थैली तेली को दे दी गई और कसाई को जेलखाने भेज दिया गया।