लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (10)ऊँची दुकान, फीके पकवान ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = ऊँची दुकान फीके पकवान
इसी तरह हस्ते खेलते मानव और राधिका के दिन गांव में गुजर रहे थे, वही आशीष को भी अब लगने लगा था की वो दोनों इस बार की सारी छुट्टियां गांव में ही बिता कर आएंगे, उन्हें गांव ज्यादा अच्छा लगने लगा है,अगर ऐसा नही होता तो वो अब तक आ गए होते
अब तो आशीष को भी उनकी कमी खलने लगी थी, आखिर वो एक पिता और एक पति था जो अपनी पत्नि और बच्चें से प्यार करता था, वो स्वयं जाने का सोचता है, लेकिन अपना और अपने पिता के बीच हुए झगडे की वजह से वो जाना कैंसिल कर देता है, वो जानता है उसके पिता उससे बात नही करेंगे वो अभी भी नाराज़ है उसके इस तरह गांव छोड़ कर शहर में बसने को लेकर और साथ ही साथ उनका सपना पूरा न कर पाने की वजह से
शाम का समय था, सब लोग बाहर आँगन में बैठ कर चाय का आंनद ले रहे थे, कि तब ही राधिका बोली " मानव बेटा! तुम्हारी अध्यापिका ने जो मुहावरें दिए थे, वो पूरे हो गए या नही, लाओ मैं कुछ मदद कराऊ, अगला मुहावरा कौन सा है, बताओ जरा "
"मम्मी, अभी सिर्फ 9 मुहावरें हो गए है, अभी देख कर बताता हूँ, कि अगला मुहावरा कौन सा है, ये रहा " ऊँची दुकान, फीके पकवान "" मानव ने अपनी कॉपी में देखते हुए कहा
"इसका क्या मतलब हुआ दादा जी " मानव ने पूछा
"बेटा इसका मतलब हुआ कि दुकान तो ऊंची थी लेकिन उसमे रखे पकवान बिलकुल फीके " दीन दयाल जी ने कहा
मानव की कुछ समझ नही आया उसने अपनी माँ की तरफ देखा, उसे इस तरह असमंजस में देख राधिका बोली " परेशान ना हो इस मुहावरें से मिलती हुयी एक घटना मेरे साथ शहर में हुयी थी, ज़ब मैं कॉलेज में पढ़ती थी,, उसे आप सब के साथ साँझा करूंगी तो मुझे भी मजा आएगा और इस तरह तुम्हारी भी समझ आ जाएगा इस मुहावरें का अर्थ "
तो बात कुछ समय पहले की है, ज़ब मैं मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थी, उसी दौरान हमारे साथ पढ़ने वाली हमारी एक दोस्त की सगाई होना थी, वो हमारी बेहद अच्छी दोस्त थी हम सब उसकी सगाई को लेकर बेहद उत्सुक थे, वो पहली लड़की थी हमारे ग्रुप की जिसकी इतनी जल्दी सगाई हो रही थी, वरना तो और लड़कियों ने तो अभी शादी करने से मना कर दिया था अपने अपने घरों पर ज़ब तक वो अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी ना कर ले, लेकिन हमारी उस दोस्त के घर का माहौल हमारे घरों से थोड़ा अलग था, उसको आगे पढ़ने की इज़ाज़त ही तब मिली थी ज़ब उसकी सगाई होती किसी लड़के के साथ और कुछ साल बाद शादी
हम सब सहेलियां बहुत अच्छे से तैयार होकर उसकी सगाई में जाना चाहते थे, इसलिए हम सब ने मिलकर एक प्लान बनाया और वो ये था कि हम लोग कपड़े और मेकअप का समान किसी लोकल मार्किट से नही बल्कि किसी अच्छी और महंगी दुकान से खरीद करेंगे
शनिवार के दिन कॉलेज बंक करके हम लोग बस से दुसरे शहर चले गए, सुना था उस शहर में बहुत बड़ी बड़ी और अच्छी दुकाने है, जहाँ एक से एक अच्छी चीज मिलती है, हम सब बेहद खुश थे, जैसे तैसे करके हम वहाँ पहुचे बाहर से वो शोरूम दुल्हन की तरह सजे हुए थे, रंग बिरंगी लाइट लगी हुयी थी, हम सब उसके अंदर गए,, लेकिन बस वो दिखावे की ही दुकाने थी उनमे मिलने वाला समान बिलकुल दो कोड़ी का था, उससे अच्छा समान हमारे यहाँ लगने वाली लोकल मार्किट में मिल जाता था और वो दुकाने फिक्स रेट की थी जबकी लोकल मार्किट वालों से समान लेने पर वो डिस्काउट भी दे देते है
घंटो उन दुकानों पर झक मारने के बाद हम सब ने यही कहा " की ऊँची दुकान और फीके पकवान "यानी की दुकान की बनावट उसकी सजावट तो शानदार थी लेकिन अंदर जो समान बिक रहा था वो महंगा भी और बेकार भी उन दुकानों के लिए ये मुहावरा ठीक बैठ रहा था
"अब तो तुम्हे समझ आ गया होगा बेटा, जो भी आपकी मम्मी ने बताया " सुष्मा जी ने कहा
"जी दादी, अब समझ आ गया, इस तरह मेरा एक मुहावरा भी पूरा हो गया और उसका अर्थ भी समझ आ गया "मानव ने कहा
सब लोग मजे से चाय का आंनद लेने लगे
मुहावरों की दुनिया हेतु
Seema Priyadarshini sahay
06-Mar-2023 07:35 AM
बहुत खूब लिखा आपने👌👌
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अदिति झा
26-Jan-2023 07:42 PM
Nice 👍🏼
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
26-Jan-2023 05:55 PM
शानदार
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