अंधे की लकड़ी
८) अंधे की लकड़ी !
" भगवान को इतना निष्ठुर नही होना चाहिए। पहले तो इन्हें कई सालों तक माॅं - बाप बनने के सुख से वंचित रखा और जब उम्र बच्चों को स्कूल से निकलवाकर काॅलेज भेजने की हुई तब जाकर औलाद के रूप में एक बेटा झोली में डाल दी। उस वक्त तो इन्हें लगा कि जमाने भर की खुशियों ने इनके जीवन में जीवनपर्यंत दस्तक दे दी है लेकिन सुख के बाद दुख के घूमते चक्र ने आज इनके जीवन के अंतिम पड़ाव में एक ऐसा दुख दिया है जिसकी चुभन इन्हें ईश्वर से सवाल जवाब के साथ -साथ अब मौत मांगने के लिए मजबूर करती ही रहेगी। अंधे की लकड़ी चली गई अब तो इन दोनों का भगवान ही मालिक है।"
घर के बाहर लगे लोगों के गोल जमावड़े से निकली ये बातें इस तरफ इशारा कर रही थी कि एक बुड्ढे माॅं - बाप ने अपने एकमात्र सहारे को हमेशा के लिए खो दिया था।
सत्यम! हां उस पंद्रह साल के बच्चे का वही तो नाम था। मैं उस बच्चे का नाम नहीं जानता था। अभी कुछ देर पहले जब उसकी माॅं उसका नाम लेकर जोर-जोर से चीख रही थी तब मुझे उसका नाम मालूम चला।
दोपहर को जब मैं घर खाने पर आया उसके बाद में रोज की तरह मैं कुछ देर आराम करना चाहता था लेकिन कमबख्त यह मोबाइल मेरी दुश्मन बन गई थी, ठीक उसी वक्त बजी जब मैंने अपने मुॅंह में एक निवाला डाला ही था। मुझे गरमा - गरम रोटियां पसंद है इसीलिए मेरी पत्नी सुधा मेरे आने के बाद ही गैस पर तवा चढ़ाती है और एक - एक रोटी मेरी थाली में डालती जाती है। उस वक्त भी गर्म- गर्म एक रोटी देकर वह किचन में दूसरी रोटी बेलने गई और मैंने खाना शुरू कर पहला निवाला डाला ही था कि मोबाइल बजने लगा।
सबसे पहले तो मन किया कि उस फोन को इग्नोर कर दूं क्योंकि खाने वक्त मुझे किसी भी प्रकार की डिस्टरबेंस पसंद नहीं है लेकिन हम जैसे कारोबारियों की यही तो दिक्कत है कि व्यापार के सिलसिले में हमें किसी भी वक्त, किसी का भी फोन आ सकता है और यदि हमने उस फोन को इग्नोर किया तो हमारा ही नुकसान होगा।
मेरे दुकान में काम करने वाला छोटू को वैसे तो मालूम था कि इस वक्त मैं खाना खाने के लिए घर पर आता हूॅं और मुझे किसी भी तरह की डिस्टरबेंस भी पसंद नहीं है लेकिन फिर भी मैंने उससे यह बात कह रखी है कि यदि बहुत जरूरी बात हो तभी मुझे कॉल करना। जरूरी बात होगी, इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने उस काॅल को उठा लिया क्योंकि यह छोटू का ही फोन था।
रोटी को चबाते हुए मैंने उसकी बात सुनी। उसकी बात सुनकर कि दुकान पर ऐसा ग्राहक आया है जो मेरे से बात करने के बाद ही मेरी दुकान से माल लेगा। मुझे अपना पूरा खाना खाए बिना ही जल्दबाजी में निकलना पड़ा था। पत्नी सुधा चिल्लाती रही लेकिन मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और मोटरसाइकिल स्टार्ट की अपने मोहल्ले की गली से निकल गया।
ध्यान में तो था कि मोहल्ले से मुख्य सड़क को जोड़ने वाली सड़क का अभी कुछ दिन पहले ही शुरू हुआ है और जगह-जगह पर खोदे गए गड्ढे से आने- जाने वाले को परेशानी हो रही है।
परेशानी तो उस वक्त उस मोटरसाइकिल पर सवार उस व्यक्ति के लिए हो गई थी, उससे अनजाने में एक ऐसी गलती हो गई जिसके भरपाई वह जीवनपर्यंत नहीं कर सकता था। अनजाने में इसलिए क्योंकि जानबूझकर उसने ऐसा नहीं किया था। वह भी किसी का बेटा था किसी घर का चिराग था और तो और उसे उस वक्त जल्दबाजी में ये भी मालूम नहीं था कि जो बच्चा उसकी मोटरसाइकिल के धक्के से दूर जाकर उस कंटीली तार पर गिरा था वह वाकई में मर जाएगा।
एक पल को तो वह मोटरसाइकिल सवार रुका था लेकिन अपनी तरफ बढ़ती भीड़ को देखते हुए वह इतना भयभीत हो गया कि उसने अपनी मोटरसाइकिल की धीमी रफ्तार इतनी तेज कर दी कि उसे अपनी दुकान पर जाकर ही रोकी।
काम खत्म करके रोज की तरह मैं जब घर आने वाले मोहल्ले में घुसा और उस जगह पर पहुंचा जहां से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थी। पहले तो मैंने वहां पर मौजूद लोगों से इस अवस्था का कारण पूछा तब पता चला कि बुड्ढे मां-बाप के अंधे की लकड़ी अर्थात एकमात्र सहारा आज किसी मोटरसाइकिल सवार की चपेट में आ गया था जिसके कारण उसकी अस्पताल ले जाते वक्त ही मौत हो गई थी।
यह सुनकर मुझे दोपहर वाली घटना याद आ गई और मैं धीरे-धीरे भीड़ को चीरता हुआ उस जगह पर पहुंचा जहां पर उस बच्चे का मृत शरीर रखा हुआ था। हे भगवान! ये तो वही बच्चा है जो मोटरसाइकिल से धक्के खा कर कंटीली तार पर जाकर गिर गया था। मैं मन ही मन में बुदबुदाते हुए उस मोटरसाइकिल सवार को कोस रहा था।
किसी तरह हिम्मत करके मैं अपनी मोटरसाइकिल तक पहुंचा और आगे की उस टायर को देखने लगा जिससे उस बच्चे को धक्का लगा था। मेरा दिल कह रहा था कि मैं वहां पर मौजूद सभी लोगों को यह बता दूं कि जिसकी वजह से इन बूढ़े मां - बाप के अंधे की लकड़ी उनसे दूर हुई है वह और कोई नही बल्कि मैं खुद हूॅं लेकिन मैं चाहकर भी ऐसा नही कर सका क्योंकि मैं भी अपने बूढ़े मां - बाप के साथ - साथ अपने पूरे परिवार का अंधे की लकड़ी हूॅं।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗 💞 💗
# मुहावरों की दुनिया प्रतियोगिता
अदिति झा
03-Feb-2023 01:59 PM
Nice 👍🏼
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Varsha_Upadhyay
01-Feb-2023 07:18 PM
Nice 👍🏼
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
01-Feb-2023 04:34 PM
शानदार
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