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मादक हो आया वसंत

मादकता ले आया वसंत


देखो सखि ऋतुराजा आया।
भाँति भाँति के रूप बनाया
सुरभित वायु झकोरे लेता।
समस्त सृष्टि शीतल कर देता।

वसुधा ओढ़े चुनर धानी।
महुआ झूम करे मनमानी
टेसू पलास भी अति इतराये।
रहे मस्त हो अति गदराये।।

आम्र मंजरी मह- मह महके।
पीली सरसो लह-लह लहके।।
भांति भाँति के पुष्प सुहाए।
गेंदा नयनों को ललचाये।।

चंपा ,जुही कली औ बेला।
नित्य नया करते हैं खेला।
उड़े भ्रमर इनके रस पीता।
प्रेम में इनके पागल जीता।।

भाग रही लज्जित हो सरदी।
हद पार उसने जो कर दी।।
प्रखर रूप में रवि सज आया।
ऊष्मा धरती को बहु भाया।।

है वसन्त की छटा निराली।
झूम रही है पत्ती डाली।।
नव कोपल से तरु है साजे।
नव अंकुर पौधों पर राजे।।

फागुन माह लुभावन आया।
सबके मन को अति हरषाया।।
इक वसन्त औ दूजे फागुन।
डूब रहे सब मस्ती के धुन।।

बसे दूर हैं पिया अनुरागी।
गोरी उन यादों में जागी।।
फागुन में भी सुधि नहि लेते।
विरह अगन मन में भर देते।।

आएं साजन सोचे गोरी।
संग पिया के खेलूँ होरी।।
छोडूँ नहि बिन रंग लगाए।
क्यों मोहे इतने साल सताए।।

प्रेम राग का माह सुहावन।
शस्य श्यामला वसुधा पावन।।
संग प्रकृति के हिय हरषे है।
ऋतुराज सखी मन बरसे है।।

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'



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6 Comments

Renu

27-Jan-2023 03:41 PM

👍👍🌺

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बहुत ही उम्दा और सजीव चित्रण

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Abhinav ji

27-Jan-2023 08:47 AM

Very nice 👍

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