हिंदी कहानियां - भाग 114
एक दिन की बात है जहाँ पनाह अकबर के दरबार मे सुबह-सुबह कोई सफाई कर रहा था। वो एक फूलदान की सफाई कर रहा था। फिर अचानक वह फूलदान उसके हाथ से फिसल जाता है और टूट जाता है। सेवक फूलदान टूटने से घबरा जाता है और कहता है या खुदा ये क्या हो गया ये तो जहाँ पनाह का सबसे पसंदीदा फूलदान था। अब जहाँ पनाह मुझे सजा देंगे और वह फूलदान के टूटे हुए टुकड़े समेट कर घबराता हुआ चला जाता है।
तभी वहां जहाँ पनाह अकबर आते हैं और अपना फूलदान न पाकर परेशान होने लगते हैं और अपने सिपाही को बुलाते हैं और कहते हैं –
अकबर – सिपाही यहाँ पर जो फूलदान रहा करता था वो कहाँ गया, कहीं वो फिर से तो कहीं नही खो गया।
सिपाही – जब मैंने सेवक को सफाई करने के लिए भेजा था तब तो यहीं था, उस सेवक को ही पता होगा के फूल दान कहाँ गया?
अकबर – जाओ उस सेवक को बुला कर लाओ और सिपाही सेवक को बुलाने चला जाता है। थोड़ी देर बाद सिपाही सेवक को बुलाकर लाता है।
अकबर – सेवक यहाँ पर जो फूल दान रखा था वो कहाँ गया?
सेवक बहुत घबरा जाता है और कहता है –
सेवक – जहाँ पनाह वो मैं फूलदान को साफ करने के लिये ले गया था।
अकबर – लेकिन साफ करने के लिए फूलदान को यहाँ से ले जाने की क्या ज़रूरत थी?
सेवक रोने लगता है और कहता है –
सेवक – जहाँ पनाह वो फूलदान मुझसे गलती से टूट गया।
अकबर – लेकिन अभी तो तुमने कहा था कि तुम फूलदान साफ करने के लिए ले गए थे। मैं तुम्हे फूल दान टूटने के लिये तो माफ करता हूँ लेकिन मैं तुम्हे झूठ बोलने के लिए माफ नही करूंगा। मुझे झूठ से सख्त नफरत है। जाओ तुम्हे सल्तनत छोड़ने की सजा देता हूँ। सिपाहियों ले जाओ इसे।
सेवक – जहाँ पनाह मुझे माफ़ कर दो मैं बहुत घबरा गया था, मुझे इतनी बड़ी सजा मत दो जहाँ पनाह रहम! जहाँ पनाह रहम!
और सिपाही उसे खींचता हुआ ले गया, फिर अगले दिन राजा अकबर ने अपने दरबार मे ये किस्सा सुनाया। दरबार में बैठे सभी लोगो ने अकबर की इस बात की तारीफ की। वाह! जहाँ पनाह आपने बहुत अच्छा किया। झूठ कभी नही बोलना चाहिए। सभी लोग कहने लगे हमने तो कभी झूठ नही बोला। जहाँ पनाह बीरबल खामोश बैठे रहते हैं, अकबर बीरबल से पूँछते हैं।
अकबर – बीरबल क्या हुआ तुम ख़ामोश क्यों हो? तुम्हारा क्या कहना है? क्या तुमने कभी झूठ बोला है?
बीरबल – जहाँ पनाह ऐसा कोई नही होता जो कभी जिंदगी में झूठ न बोले कभी न कभी तो इंसान को झूठ बोलना ही पड़ता है। कभी-कभी इंसान इसलिए झूठ बोलता है कि हमारे सच से किसी को तकलीफ न हो। अपने आप को शर्म से बचाने के लिए भी इंसान झूठ बोलता है। इंसान को कभी न कभी झूठ बोलना ही पड़ता है। मैं कैसे कह दूं कि मैंने कभी झूठ नही बोला।
अकबर – क्या, क्या! मैं ये समझू मेरे नौ रत्नों में से एक रत्न झूठा है। इस सल्तनत में सभी के लिए कानून बराबर है। जाओ तुम इस दरबार से निकल जाओ।
बीरबल – लेकिन जहाँ पनाह मेरी बात तो सुनिए!
अकबर – हम कुछ नही सुनना चाहते हैं, चले जाओ!
तभी बीरबल वहाँ से चले जाते हैं।
फिर क्या था बीरबल अब सोचने लगे के जहाँ पनाह को अब कैसे समझाया जाए। फिर क्या था बीरबल अपना दिमाग चलाने लगे और बहुत सोचने के बाद उन्होंने एक गेँहू की बाली ली और सेवक को बुलाया और सेवक से कहा –
बीरबल – सेवक राम ये गेहूँ की बाली लो और शहर का सबसे अच्छा सुनार ढूंढो और एक ऐसी ही गेहूं की बाली सोने की बनबा कर लाओ, ध्यान रहे गेहूँ के दानों से लेकर बाली तक सभी सोने का होना चाहिए।
सेवक – जी हुजूर मैं अभी जाता हूँ।
और कुछ दिन बाद वो सोने की डाली लेकर अकबर के दरबार मे गए।
अकबर – तुम्हारी हिम्मत कैसे हुइ दरबार में आने की तुम्हे यहाँ आने से मना किया था न।
बीरबल – जहाँ पनाह मैं यही किसी औधे की हैसियत से नही बल्कि मैं एक नागरिक की हैसियत से आया हूँ। मैं आपको दुनिया की सबसे अमीर सल्तनत का बादशाह बनाना चाहता हूँ। ये देखिए सोने के गेहूं की बाली।
अकबर और वहाँ मौजूद सभी लोग बहुत हैरान होकर उस बाली को देखते हैं। अकबर कहते है –
अकबर – ये तो सचमुच सोने की बाली है ये तुम्हे कहाँ मिली?
बीरबल – जहाँ पनाह ये कोई साधारण बाली नही है, ये मुझे एक ज्योतिषी ने दी थी, जो बहुत कड़ी तपस्या के बाद उन्हें मिली थी। जहाँ पनाह वो कोई साधारण ज्योतिष नही था, एक दिन वो जयोतिष मुझे नदी के किनारे मिला और वो ज्योतिष वहां नदी के पानी के ऊपर चल रहा था। इस तरह से जिस तरह हम जमीन पर चलते हैं।
अकबर हैरान होकर पूछते हैं –
अकबर – अच्छा इतने महान ज्योतिष हैं तो फिर चलो देर कैसी है इसे अभी खेत मे बो देते हैं।
बीरबल – हाँ-हाँ जहाँ पनाह मैंने इसका इंतेज़ाम पहले ही कर रखा है। मैंने एक बहुत अच्छी जगह इसके लिए देख रखी है। हम कल सुबह इस बाली को वहाँ बोएंगे।
अकबर – हाँ बीरबल हम कल सुबह ही इस बाली को बोयेंगे
और ये सब को बता देना की हम ये सोने की बाली उस उपजाऊ ज़मीन पर बोने वाले हैं।
बीरबल – जी जहाँ पनाह मैं कल सुबह ही आ जाऊंगा सब को ले कर।
फिर अगले दिन अकबर और बीरबल बहुत से लोगो के साथ उस जगह पर आते हैं।
बीरबल – जहाँ पनाह ये है वो जगह जिसके बारे में मैं आपको बता रहा था।
अकबर – बीरबल तो देरी क्या है इस बाली को जाकर बो दो।
बीरबल – मैं नही जहाँ पनाह, मैं इसे नही बो सकता हूँ। क्योंकि इस बाली को वही बो सकता है, जिसने कभी झूठ नही बोला हो। मैंने तो कई बार झूठ बोला है। आप ये काम किसी और से करबा लीजिये।
अकबर वहाँ खड़े लोगों से पूछते हैं –
अकबर – क्या आप में से कोई है जिसने कभी झूठ नही बोला है।
वहाँ खड़े सभी लोग चुप रहते हैं, कोई आगे नही आता है।
अकबर – हमे ये उम्मीद नहीं थी।
बीरबल – जहाँ पनाह अब आप ही एक ऐसे शख्स हैं, जिसने कभी झूठ नही बोला। आप ही इस बाली को बो दीजिये।
अकबर बहुत हिचकिचाते हैं और कहते हैं –
अकबर – मैं, मैं कैसे, मैने भी कभी न कभी तो झूठ बोला है, बचपन में या फिर कभी और।
बीरबल – जी जहाँ पनाह मेरे कहने का भी मतलब वही था। इंसान को कभी न कभी झूठ बोलना ही पड़ता है। या किसी को ठेस न पहुंचे इसलिए या फिर शर्मिदा न होना पड़े। कभी इसलिए और कभी कभी किसी अच्छे काम के लिए भी झूठ बोलना पड़ता है।
और हाँ जहां पना मैंने वह बाली शहर के सुनार से बनबाई थी। ये मुझे किसी ज्योतिष ने नही दी थी। मैंने आप को समझाने के लिए ऐसा किया था।
अकबर – हमे माफ कर दो बीरबल हमे ऐसा नही करना चाहिए। हम आपको निर्दोष करार करते हैं। तुम हमारे सच्चे मित्र हो हम समझ गए बीरबल।
और इस तरह अकबर को अपनी गलती का एहसास हो गया। और अकबर ने उस सेवक को भी माफ कर दिया जिससे वह फूलदान टूटा था।