लेखनी कविता - अनजान

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अनजान जैसे जैसे जीवन की समझ बढ़ती है, इंसान मोन होता जाता है। सब कुछ जान कर भी नजरअंदाज कर, अनजान बन बस मुस्कुरा जाता है। 🖋️ स्वाती चौरसिया ...

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