रहीमदास जी के दोहे

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रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।  अर्थ—  रहीमदास जी कहते हैं कि आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट ...

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