रहीमदास जी के दोहे

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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।। अर्थ— रहीमदास जी कहते हैं कि दुनिया जानती है कि खैरियत, खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और ...

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