कली

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*गीत*(16/14) वृंत-वृंत पर....... वृंत-वृंत पर फूल खिलें हैं, और समीर सुगंधित है। कलियों पर भौंरे मड़राएँ- उपवन मधुकर-गुंजित है।। पवन फागुनी की मादकता, हृदय सभी का हुलसाए। सजनी को उसके साजन ...

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