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कविता -कलयुग की कली कली, अधखिली सोंच में थी पड़ी, तरुणा में करुणा लिए क्रंदन का विषपान पिए रति छवि का श्रृंगार किए मन में ली वह व्यथित बला कलयुग कंटक ...